Sunday 29 January 2017

भन्साळी ला राजपुती चोप !

 बॉलीवुड में भांड भरे है, नीयत सबकी काली है...
इतिहासों को बदल रहे, संजय लीला भंसाली है...

चालीस युद्ध जितने वाले को ना वीर बताया था...
संजय तुमने बाजीराव को बस आशिक़ दर्शाया था...

सहनशीलता की संजय हर बात पुरानी छोड़ चुके...
देश धर्म की खातिर हम कितनी मस्तानी छोड़ चुके...

अपराध जघन्य है तेरा, दोषी बॉलीवुड सारा है...
इसलिए 'करणी सेना' ने सेट पर जाकर मारा है...

संजय तुमको मर्द मानता, जो अजमेर भी जाते तुम...
दरगाह वाले हाजी का भी नरसंहार दिखाते तुम...

सच्चा कलमकार हूँ संजय, दर्पण तुम्हे दिखता हूँ...
जौहर पदमा रानी का, तुमको आज बताता हूँ...

सुन्दर रूप देख रानी का बैर लिया था खिलजी ने...
चित्तौड़ दुर्ग का कोना कोना घेर लिया था खिलजी ने...

मांस नोचते गिद्धों से, लड़ते वो शाकाहारी थे...
मुट्ठी भर थे राजपूत, लेकिन मुगलो पर भारी थे...

राजपूतो की देख वीरता, खिलजी उसदिन काँप गया...
लड़कर जीत नहीं सकता वो ये सच्चाई भांप गया..
.
राजा रतन सिंह से बोला, राजा इतना काम करो...
हिंसा में नुकसान सभी का अभी युद्ध विराम करो..
.
पैगाम हमारा जाकर रानी पद्मावती को बतला दो...
चेहरा विश्व सुंदरी का बस दर्पण में ही दिखला दो...
              
राजा ने रानी से बोला रानी मान गयी थी जी...
चित्तौड़ नहीं ढहने दूंगी ये रानी ठान गयी थी जी.
..
अगले दिन चित्तौड़ में खिलजी सेनापति के संग आया...
समकक्ष रूप चंद्रमा सा पद्मावती ने दिखलाया...

रूप देखकर रानी का खिलजी घायल सा लगता था...
दुष्ट दरिंदा पापी वो पागल पागल सा लगता था...

रतन सिंह थे भोले राजा उस खिलजी से   छले गए...
कैद किया खिलजी ने उनको जेलखाने में चले गए...

खिलजी ने सन्देश दिया चित्तौड़ की शान बक्श दूंगा...
मेरी रानी बन जाओ,,,,, राजा की जान बक्श दूंगा...

रानी ने सन्देश लिखा,, मैं तन मन अर्पण करती हूँ...
संग में नौ सौ दासी है और स्वयं समर्पण करती हूँ...

सभी पालकी में रानी ने बस सेना ही बिठाई थी...
सारी पालकी उस दुर्गा ने खिलजी को भिजवाई थी...

सेना भेजकर रानी ने जय जय श्री राम बोल दिया...
अग्नि कुंड तैयार किया था और साका भी खोल दिया.
..
मिली सुचना सारे सैनिक, मौत के घाट उतार दिए...
और दुष्ट खिलजी ने राजा रतन सिंह भी मार दिए...
           
मानो अग्नि कुंड की अग्नि उस दिन पानी पानी थी...
सोलह हजार नारियो के संग जलती पदमा रानी थी...

सच्चाई को दिखलाओ,,,, हम सभी सत्य स्वीकारेंगे...
झूठ दिखाओगे संजय,,, तो मुम्बई आकर मारेंगे...




*भंसाली की फिल्‍म पर बवाल जानें रानी पद्मावती की असली कहानी !!*

*संजय लीला भंसाली की नई फिल्‍म पद्मावती को लेकर इस समय काफी चर्चा है। राजस्‍थान में फिल्‍म की शूटिंग के विरोध और भंसाली के साथ मारपीट के बाद इस फिल्‍म को लेकर लोगों को उत्‍सुकता हो गई। सभी को जानना है कि आखिर पद्मावती कौन थी और जिसकी कहानी में छेड़छाड़ करना भंसाली को भारी पड़ गया। आइए पढ़ें पूरी कहानी...*
                                               
*रानी पद्मावती चित्तौड़ की रानी थी। रानी पद्मावती के साहस और बलिदान की गौरवगाथा इतिहास में अमर है। सिंहल द्वीप के राजा गंधर्व सेन और रानी चंपावती की बेटी पद्मावती की शादी चित्तौड़ के राणा रतनसिंह के साथ हुई थी। रानी पद्मावती बहुत खूबसूरत थी और उनकी खूबसूरती पर एक दिन दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की बुरी नजर पड़ गई।*

*रानी पद्मावती को पाने की ललक में खिलजी ने चित्‍तौड़ पर आक्रमण की ठानी। खिलजी ने एक चाल चली और रतनसिंह को पत्र लिख कर कहा की रानी पद्मावती को वह अपनी बहन समान मानता हैं और एक बार उनके दर्शन करना चाहता हैं इस पर राणा रतनसिंह ने सहमति जताई और रानी पद्मावती कांच में अप्रत्यक्ष रुप से अपना चेहरा दिखाने को राजी हो गईं। रानी पद्मावती की सुन्दरता देखकर खिलजी पागल सा हो गया और उसने राणा रतनसिंह को बंदी बना लिया।*
                                                       
*राणा रतनसिंह को बंदी बनाने की खबर ने पूरे इलाके में हड़कंप मचा दी।चित्‍तौड़ की सेना अपने राजा को मुक्‍त कराने के लिए योजना बनाने लगी। अगले दिन सुबह होते ही 150 सैनिक पालकी के साथ रतनसिंह की सेना के सेनापति गोरा और बादल खिलजी के शिविर की तरफ बढ़ चले। इन पालकियों को देखकर खिलजी उत्साहित हुआ और सोचा इसी में ही पद्मावती को लेकर आये हैं मगर इस मे गोरा बादल की चाल थी इन पालकियो में राणा रतन सिंह को बचाने पहुचे गोरा और बादल और मेवाड़ की सशस्त्र सेना बाहर निकली और खिलजी के चगुल से रतनसिंह को आजाद करवा लिया इस मुठभेड़ में गोरा मेवाड़ी महानायक शहीद हो गया और बादल खिलजी के अस्तबल से घोड़े निकालकर चितोड़ की तरफ चल पड़े।*

*खिलजी से यह अपमान सहा नहीं गया और उसने मेवाड़ के साथ खुलेआम युद्ध का शंखनाद फूंक दिया। दोनों सेनाएं मैदान में एक-दूसरे से भिड़ पड़ीं। इस युद्ध में मेवाड़ी सेना के सारे सिपाही मारे गए साथ ही राणा रतन सिंह की भी मृत्‍यु हो गई। इसके बाद खिलजी ने दुर्ग के भीतर की राजपूत महिलाओ को बंदी बनाने का आदेश दे डाला। खबर पाकर रानी पद्मावती ने चित्तोड़ दुर्ग के अन्दर एक बड़ी चिता जलाने को कहा और जैसे ही खिलजी की सेना महिलाओं को बंदी बनाने के लिए दुर्ग के भीतर प्रवेश करने लगी। अपनी आबरू की खातिर पद्मावती और सभी राजपूत महिलाएं उस जलती अग्निकुंड में कूद पड़ी और देखते ही देखते सभी ने जोहर कर दिया मेवाड़ के इस जोहर को आज भी लोकगीतों में याद किया जाता हैं।*
*हमेशा की तरह फिल्म वालों ने विदेशों के बाजार अनुसार कहानी में रानी पद्मावती जिन्होंने अपनी एवं अन्य महिलाओं की आबरू बचाने के लिये बच्चों सहित पवित्र जौहर किया, को आक्रांता खिलजी  की प्रेमिका बनाकर कहानी रच दी।*

                                                              





*हम महिला की इज्जत-आबरू को सर्वोपरि मानने वाले समाज के सदस्य इस घटना में सहयोग ना कर सकते पर व्यक्तिगत समर्थन देकर पवित्र यज्ञ में आहुति दे सकते हैं।*
*कोई तो है जो फिल्मी समाज को राजस्थान में आँखे दिखाकर असलियत दिखाने कह रहा है।*



◆◆ *जय जय राजस्थान* ◆◆


असंच काहीतरी ......!

: तेरी मर्जी से ढल जाऊँ हर बार ये मुमकिन तो नही..
मेरा भी वजूद है ,मैं कोई आइना तो नहीं..



 खुल जाता है तेरी यादों का बाजार सुबह सुबह....
और हम उसी रौनक में पूरा दिन गुज़र देते है

‬: *अहसान रहा इलज़ाम लगाने वालो का मुझ पर....*
*उठती उगलियो ने जहाँ मे मुझे मशहुर कर दिया......*



"भुलना सीखिए जनाब.....! "

एक दिन दुनिया भी वही करने वाली है.!



                          Image result for हाहाहा                   ...✍​
                                                 💞💞
 *कितना महफूज था गुलाब, काँटों की गोद में....*
*लोगों की "मोहब्बत" में, पत्ता-पत्ता बिखर गया....!!!!*



‬: इश्क तो शरीफ है बेचारा .......
      उसके तो बस किस्से खराब है ........!!!!!




‬: बस आखरी बार इस तरह मिल जाना,
मुझ को रख लेना या मुझ में रह जाना



 इससे बड़ी बेदर्दी क्या होगी किस्मत की
हमारे साथ...
-.-
-.-
-.-
-.-
राइटिंग खराब थी फिर भी डॉक्टर ना बन
सके..





😜😜😜😜😜😂😂😂😂😂😃आता तर हद्दच झाली गणिताची पार...😂😂😂
गणित विषयामध्ये सुत्रे पाठ होण्यासाठी *उखाणा* उपक्रम.
१) महादेवाच्या पिंडीसमोर
     *उभा आहे नंदी*
    आयताचे क्षेञफळ =
     *लांबी x रूंदी*.
२) हिमालयातील काश्मिर
     म्हणजे *भूलोकातील स्वर्ग,*
     चौरसाचे क्षेञफळ म्हणजे
      *बाजूंचा वर्ग*.
३) देवीची ओटी भरू     
     *खणानारळाची,*
    त्रिकोणाचे क्षेञफळ =
      *१/२xपायाxउंची*.
४) स्वातंत्र्या ची पहाट म्हणजे
     *१९४२ ची चळवळ*,
     (सहा बाजू) वर्ग.....
      हे *घनाचे पृष्ठफळ*
५) तीन पानांचा बेल त्याला
     *येते बेलफळ*
    लांबीxरूंदीxउंची..... हे
    *इष्टिकाचीतीचे घनफळ.*
६) जुन्या हजार पाचशेच्या
     *बंद झाल्या नोटा*,
     खरेदी वजा विक्री
     *बरोबर होईल तोटा*
७) मी आणि माझे विद्यार्थी
     *दररोज खातो काजू* ...
     चौरसाची परिमिती =
     *4 × बाजु*.
 ८) खोप्यात खोपा
      *सुगरणीचा खोपा*
      विक्री वजा खरेदी
       *बरोबर होईल नफा*
९) चाळीस शेर म्हणजे
     *एक मण...!!*
     घनाचे घनफळ
      *बाजूचा घन....!!*
१०) *जीवाला जीव देतो तोच    खरा मित्र*
*गणित सोडवायला माहिती  हवीत सुत्र*
११) सम आणि व्यस्त हे
        चलनाचे प्रकार
       *पहिल्यात असते गुणोत्तर*
        *तर दुसर्यात गुणाकार*
१२) "गोड" म्हणजे "स्वीट"..
       "कडू" म्हणजे "बीटर"..!!
        एक घनमीटर म्हणजे..
         *एक हजार लीटर....!!!!*
१३) रविवार नंतर सोमवार
       येतो,
       *रविवार नंतर सोमवार* 
        *येतो.....*
       प्रत्येक ऋण संख्येचा
        वर्ग ...
        *नेहमीच धन होतो*.
१४)महादेवाला आवडते
      *बेलाचे पान...*
      कोणत्याही ञिकोणात
      *एक बाजू...*
      *दोन बाजूच्या बेरजेपेक्षा*
       *लहान....!!*😊
१५) दोनचा वर्ग चार.... !!
       *चार चा वर्ग सोळा.... !!!!*
       गणिताचे उखाणे    
        घ्यायला,
   *सुवासिनी झाल्या गोळा..!!!*

Saturday 28 January 2017

*!!मराठयांच्या इतिहातील एक सोनेरी दिवस!!

........🚩जय भवानी🚩 ...........       

                            *!!मराठयांच्या इतिहातील एक सवर्ण दिवस!!*
*१)----------*आज तोच दिवस आणि  तीच रात्र आहे. आषाढ  पौर्णिमा शके १५८२:श्रीगुरूपौर्णिमा .छत्रपतीशिवाजीराजे  सिद्दी जौहरचा वेढा भेदून नरवीर बाजी प्रभू देशपांडे यांच्या समवेत किल्ले पन्हाळा वरून किल्ले खेळण्याकडे(विशाळगड)निघाले.
 महाराज्यांची रात्री १०वाजता गड सोडला. शिवाजीराजांनी स्वतःच्या बचावाकरीता एका पालखीत शिवाजी(शिवा काशिद)नावाच्या सारखा दिसणाऱ्या  एका न्हाव्यास बसून ती पालखी नेहमीच्या लवाजम्यासह नेहमीच्या रस्त्याने पाठविली व स्वतः दुसऱ्या पालखीत बसून दुसऱ्या जास्त अवघड रस्त्याने निघाले .शत्रूंनी पहिली पालखी चांदण्यात सहज पकडली व गोटात आणली.शिवा न्हाव्या मुले महाराज शत्रू पासून दूर जाऊ शकले.आपला मृत्यू अटळ असूनही शिवा काशिद हसत हसत पालखीत बसला कारण   शिवाजी महाराज बनण्याची संधी भाग्यवंतालाच मिळते.                 

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 *🚩नरवीर शिवा काशिद ह्यांना त्रिवार मुजरा*.


 *२)-----------*रात्री छत्रपती शिवाजी महाराज रायाजी बांदल बाजी प्रभू देशपांडे त्यांचे भाऊ फुलाजी प्रभू देशपांडे आणि ६००मावळे प्रत्येकाकडे हत्यार भाला ,विटा ,पट्टा, तरवार,गुर्ज, कट्यार ,वाघनख,बिचवा सोबत घेऊन महाराज्यांची पालखी भर पावतात नेली. तुम्ही आज थोडा  अभ्यास करा बाहेरच वातावरण बघा कि आपण ५किलोमीटर तरी जाऊ शकतो का शेतातून भर पावसात.महाराज्यांची पौर्णिमेच का निवडली? मग तुम्हाला तिथीच महत्व कळेल.




*३)----------*स्वप्नातलेही वचन पाळतो आम्ही महाराजांना आम्ही वचन दिल आहे.

दोन प्रहर (१प्रहर३तास)पर्यंत खिंड झुंजवत ठेवतो.तिथवर तुमी विशाळगड गाठा गनिमास रीतभर पुढे सरकू देत नाही.झुंज होणार आम्ही सर्व झुंजू .तोफे आधी ना मरे बाजी सांगा मृत्यूला.



*४-----------*रात्रभर धावून सर्व दमले होते.दिवसाच्या पहिल्या प्रहरी शिवाजीमहाराज पांढऱ्या पाण्यावर विसावतात न विसावतात तोच पिछाडीवरील टेहळ्याने  मलकापूरच्या दिशेने घोड्यांच्या टापांचे आवाज ऐकू येत असल्याचे रायाजी बदलास सांगितले.बाजी प्रभूनी त्वरित निर्णय घेऊन पांढरे पाणी तिढ्यावर २५धारकरी ठेवण्यास रायजीस सांगितले.अजून शत्रूस निश्चित मग लागला नोव्हता.हे लक्षात घेऊन आणि विजापुरी सैन्याची संख्या लक्ष्यात न येऊन त्या २५धारकऱ्यांवर विजापुरी सैन्य रोखण्याची कामगिरी सोपवण्यात आली.अणुस्कुराघाटाची आम रस्त्याची तत्कालीन वाट सोडून महाराज उजवीकडील प्राचीन लमाण वाहतूक घोडखिंड मार्गाने निघाले.कळत नकळत पांढऱ्या पाण्यावरील मसलतीत ठरविल्याप्रमाणे मार्गस्थ होईपर्यंत त्या दिवसाचा पहिला प्रहार संपून दुसरा प्रहर चालू झाला.





*५)------------*विजापुरी घोडळाची तुकडी पांढर पाणी येथे आली आणि " हर हर महादेव"गर्जना  करीत मराठा वीर आषाढातील विजेसारखे कडाडले.
त्या २५धारकऱ्यांनी तुंबळयुद्ध केलं .त्या वीरांपुढे समोरून येण्याची कोणाची हिम्मत नोव्हती.विजापुरी वाढत्या लोंढ्यापुढे ते जास्त काळ टिकाव देऊ शाकले नाही .त्यांना घेरून पाठीमागून वार केले गेले.ह्या रणधुमाळीत हे २५वीर मारले गेले .पण सिद्दी मसूद  मात्र फसला महाराज पुढे गेले असावे समजून त्याने "येळवण जुगाई"पर्यंत घोडदौड केली.आता दिवसाचा दुसरा प्रहर पण संपला दुपारचे१२वाजले .रायजीचा सेनापती या नात्याने बाजी प्रभू पुढे सरसावला आणि घोडखिंडीच्या पलीकडील मुखावर  बाजी प्रभू ह्यांनी उभ्याउभ्याच निर्णय घेतला.३००मावळ्यांचा एक गट करून उर्वरित मावळे पालखीसोबत नेमले.महाराजना पालखीतून बाहेर येऊ दिले नाही.आणि जबरदस्त आत्मविश्वासाने महाराजांना शब्द दिला.महाराज आपण नि्मे लोक घेऊन गडावर निघोन जाणे.तो पावेतो ह्या खिंडीमध्ये आपण नि्मे  मावळेंनीसी दोन प्रहर पावेतो आपल्या पाठीवर दुष्मनाची फौज येवो देत नाही.गनीम थोपवोन खिंड चढो देत नाही.साहेब नोघोन जाणे.आपण साहेब कामावरी मारतो.साहेब कामावरी पडलो तरी मुलालेकरास अन्न देणार महाराज आहेत.शिवराय म्हणाले ,उत्तम किलियावरी पावलो म्हणजे तोफेची इशारत करू नंतर तुम्ही निघोन येणे.खिंडीतील मावळ्यांचा व बाजींचा  मुजरा स्वीकारून महाराज खिंडीतून घोडमाळावरून रवाना झाले.



                                              Image result for baji prabhu deshpande घोडखिंड
*६)----------*महाराज्यांची पालखी जाताच मावळ्यांनी बाजींच्या सांगण्यानुसार  दगडांच्या राशी ठीक ठिकाणी जमा करण्यास सुरवात केली.कुणी गोफणीतून मारा करण्यासाठी वाटोळे दगड जमा करत होते तर काही मोठ्या शिळा जमा करत होते.झाडाझुडपात लांबलचक फळी उभारून फार मोठी संख्या असल्याचा भास केला.गनिमिकाव्याच्या युद्धात कसलेली ति बांदलांची ती फौज बाजींचे आदेश क्षणात आकलन करीत होती.जीत पर्यंत गनीम कासारी चा ओढा ओलांडून घोडमाळ चढून वर येत नाही तो वर कमरेच्या समशेरील हात लावायचा नाही.गोफण गुंड्याचा मारा आणि वर येत असलेल्या गनिमावर शिलाखंड लोटून गनीम थोपवायचा.महाराजांना विशाळगड पोहचण्याचा अवधी द्यायचा,हे सर्व मावळ्यांना ध्यानी होते. *७)-----------*सिद्दी मसूद आणि फाजलखानच्या घोडदळांच्या टापा घोडखिंडीच्या जवळ येऊ लागल्या.पहिली टोळी खिंडीत थबकली आणि मराठ्यांच्या गोफणी भराभर गरगरल्या आणि त्या टोळीवर उल्कापात झाला .अकस्मात झालेल्या हल्ल्याने घोडे आणि स्वार जखमी झाले आणि माघारा फिरले.दुसरी टोळी आली मागे फिरली .तिसरी टोळी आली मागे फिरली.चौथी आली.पाचवी आता मात्र खिंडीच्या तोंडावर येण्याची कोणाची हिम्मत होईना.खिंडीपासून काहीसे दूर राहून मसूद आणि फाजल विचार करू लागले.खुद्द शिवाजी महाराज खिंडीत युद्ध करण्यास उभे आहेत अस वाटलं. आणि फाजल ला आठवले प्रतापगडावरचे रण. मसूद शिवरायांच्या गनिमी काव्यापासून अपरिचित होता.म्हणून तो खिंडीत आला त्याला तिथे कुणी दिसले नाही



पण वरून गरगर करत येणारे दगड गोटे गनिमंचा वेध घेत होते.ताज्या दामच घोडदळ येईपर्यंत मसूद ने माघार घेतली.मसुदने आपल्या सैन्यास दोन्ही बाजूनी जाण्यास मार्ग आहे का बघण्यास सांगितले.परत आलेल्या सैनिक म्हणाले दोन्ही बाजूनी खोल दरी आहे .जाण्याचा हाच एकमेव रस्ता आहे .पुढे जावं तर दगडांचा वर्षाव होतो .आणि  वर गच्चं रानामुळे किती मावळे आहेत हे कळेना मसूद व फाजलने हाय खादली. तेव्हा दिवसाचा तिसरा प्रहर (दुपारचे३वाजून गेले) उलटला.




*८)-----------*आता मात्र पिडनाईकाच्या पायडळाची मदत पिछाडीस येऊन आता तिघेही अवसान बांधून पुढे सरसावले.खिंडीचा उत्तर उतरू लागले .गोफण गुंडे गरगरत होते पाऊस कोसळत होता.मेलेल्या घोडयांच्या आणि जखमी मानवी मुडद्याना ओलांडून शे-दोनशे लोक ओढ्यात पोहचले बाकीचे त्यांना रेटा करून बिलगले आणि आता खिंडीचा चढ चढणार तोच वरून शिलाखंड घोडदळावर आढळू लागले.घोडे जायबंदी होऊ लागले .ते पाहून पिडनाईकाच्या पायडळाने कच खादलि. मराठी सैन्याचा मागमूस लागत नोव्हता.वरून रानभर चहूंकडून दगडाचा वर्षाव होत होता.एका झुडपा आडून दगड मारला कि मराठा दुसऱ्या झुडपातून शिळा लोटी त्यामुळे मराठे असंख्य असल्याचा भास होत होता. अश्या प्रकारच्या युद्धाची विजापुरी सैनिकस कल्पना नोव्हती.त्याच्या हातातील नागवी तलवार त्याच्या हातातच राहिली.ते मात्र न लढतच धरणीवर उताणे पडून आसमान पाहू लागले.काही पालथे पडून धरणी चाटू लागले.अदृश्य राहून मावळ्यांनी मांडलेल्या दगडी युद्धात विजापुरी घोडदळानें माघार घेतली.            





*९)------------*आता मात्र पिडनाईकाचे घोडदळ पायउतार झाले .सिद्दी मसूद आणि फाजल खान यांनी एकत्रित खिंडचढण्याचा प्रयत्न केलं .आता विजापुरी लोंढा वाढत होता.आता मात्र हातघाईची लढाई होणार होती दिवसाचा तिसरा प्रहार कधीच संपला होता.झाडाझुडपातून एकच आवाज आसमंतात गुंजला "हर हर महादेव"
"जय भवानी जय शिवाजी" तिथून आवाज येत होता अल्लहु अकबर दिन दिन.मराठ्यांच्या फळीच्या  मध्यावर दोन्ही हातात पट्टे घेऊन साक्षात शिवशंकर ह्यांचे भैरवस्वरूप बाजी गर्जत होते.पट्टे फिरताना रणमंडल विस्तारले जात होते.त्या लवळवत्या शेष्याच्या जीभासमोर विजापुरी सैन्या कच खाऊ लागले.बाजी समोर कुणाची येयची शामत होईना .बाजी गनिमास ललकारत यार म्होरं विजापुरी सैन्य मागे हटे. आता मात्र गनिमांची संख्या वाढत होती.बाजी आपल्या मावळ्यांना सांगत राजे पोहचले नाही गडावर हि खिंड झुंजवत ठेवायची आहे .तेव्हढेच मावळे त्वेषाने लढत.आता मात्र मराठ्यांची संख्या कमी होऊ लागली.
एक एक मावळा दहा जणांचे वारं झेलत होता पर्तवत होता.ज्याची ढाल तुटली त्यां मराठ्याने शत्रूचे वारं डोईचे पागोटे हातात गुंडाळून त्याचावर झेलले.ज्या मराठ्यांचे खडग तुटले त्याने भाला हाती घेऊन पवित्र घेतला.ज्या मावळा जवळील भालाही मोडला त्या मावळ्याने कमरपट्ट्यातील खंजीर काढून सिहं व्याघ्रावत झेपावत शत्रू रोखला.सरतेशेवटी स्वरुधिराने न्हाऊन कोसळत होता पण अपसव्य हातातील पकड दिली होत नोव्हती.



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*१०)-----------*सिद्दी मसूद वैतागला होता .बाजींना पाहून तो फाजल ला म्हणतो आदमी नही ये शैतान हे .आणि बाजी खिंडीत असे पर्यंत आपण खिंड पार करू नाही शकत हे सिद्दीला समजलं होत .बाजी गर्जत होते पट्टा आसमंतात फिरत होता शत्रूचा वेध घेत होता.अक्षरशः देवांनाही हेवा वाटावा अस युद्ध या पावनखिंडीत चालू होत .वय वर्ष ५०आठ मुलांचा बाप आणि काय हे शौर्य काय हि स्वामीनिष्ठा.असंख्य घाव झेलून बाजी खिंड लढवत होते.रुधिराने अंग शेंदूर फसलेल्या हनुमंता प्रमाणे भासत होते.आता मात्र सिद्दी मसूद ने मागे असलेल्या पिडनाईकाचे बंदूक धरी सैन्य मागवलं ते दहा जण खिंडी पाशी आले  त्यांनी बंदुकी बाजींवर रोखल्या बंदुकीचे दहा बार उडाले .त्यातील एक गोळी बाजींच्या दंडात शिरली फिरणारा पट्टा थांबला विजापुरी सैन्यानी बाजींनी कोंडी केली. एका हाताने बाजी तरीही पट्टा फिरवीत होते जस रक्त जळत जयी तसे बाजी हतबल होई असंख्य वार बाजींवर झाले.बाजी धरणीवर पडले.अजूनही अंगात रग होती.मागच्या मावळ्यांनी बाजी पडले पाहताच धाव घेतली  जोरदार मुसंडी मारली विजापुरी लोंढा माघे केला बाजींना  मावळ्यांनी मागे नेलं शीर तुटलं तरी धड लढतय.हा पराक्रम पाहण्यासाठी मृत्यूचा देव यम तो पण थांबला बाजींनी मावळ्यास विचारले तोफांचा बार झाला कि नाही .मावळा म्हणाला बाजी तुम्ही आराम करा आम्ही खिंड लढवतो. म्हणजे तोफेचा बार झाला नाही तोवर हा बाजी मरणार नाही वचन दिल आहे आम्ही राजांना ,स्वप्नातीलही वचन पाळतो आम्ही, बाजींनी आपला विटा मागविला त्याच्या आधार घेत बाजी पुन्हा खिंडीत गेले.बाजींना पाहून विजापुरी सैन्य मागे होई.कि ज्याच्या अंगावर घावाला जागा नाही त्याच्या दंडात गोळी लागली आहे .तरी तो विटाचा आधार घेत खिंडीत उभा आहे.तोवर तोफांचे तीन बार झाले  धडाम धूम बाजींच्या चेहऱ्यावर अक्राळविक्राळ हास्य उमटले धन्य झालो. 




राजे तुमच्या बाजींने शब्द पळाला दोन प्रहर हि खिंड झुंजवत ठेवली.महाराज ह्या बाजीचा तुम्हाला अखेरचा मुजरा .बाजी धरणीवर कोसळले उरलेले ५,५०मावळे जंगलात पसार झाले.चिडलेल्या मसूद ने घोडदल अंगावर घातले.विशाळगड खाली असलेला दळवी आणि सर्वे ह्यांचा वेढा मारून महाराज संध्याकाळी ६ला गडावर पोहचले.महाराजांनी लगेच बाजींसाठी पालखी पाठवली कधी बाजींना घट्ट मिठी मारतो अस महाराजांना झालं होत.आजवर कित्तेक युद्ध बाजींनी शिरावर घेतली होती.आणि एव्हड्या मोठ्या संकटातून बाजींनी राजांची सुटका केली हाती.थोड्याच वेळात पालखी घेऊन मावळे आले राजे म्हणले शेला आणा आम्ही स्वतः बाजींना घालणार मावळ्यांनी राज्यांचा हात धरला .तुम्हाला बघवणार नाही.राजांनी पडदा बाजूला केला जगदंब जगदंब जगदंब शरीरावर कुठे जागा नोव्हती चेहऱ्यावर सुद्धा वर होते.तुटलेल्या मनगटात अजून पट्टा घट्ट पकडलेला होता.जणू काही थोफांचा बार झाला नसता तर हे मनगट लढत असत.हातातील पट्टा बाजूला काढून राजांनी बाजीचा हात हातात घेतला.गहिवरून आलेले राजे म्हणाले का मला अशे सोडून चालत मी राजा झाल्यावर मिरवणारी कोण नाचणार कोण .महाराज्यांनि बाजी आणि मावळ्यांचा अंतविधी पार पडला.आणि महाराज कोकणात उतरले.



*!!इथेच फुटला बांध खिंडीला बाजीप्रभूच्या छातीचा !!*
*!!इथेच फुटली छाती परिना दिमाख हरला जातीच!!*



🚩नरवीर बाजी प्रभू देशपांडे ह्यांना त्रिवार मुजरा.


*आपण आज या युद्धाची आणखी माहिती घेऊ.*




*१)*किल्ले पन्हाळा ते विशाळगड हे अंतर ४२मैलांचे आहे.म्हणजे ६७किलोमीटर हे अंतर पार करण्यासाठी महाराजांना ७प्रहर म्हणजे(१प्रहर३तास)२१तास लागले.बाजींनी खिंड दीड प्रहार रोखली म्हणजे साडेचार तास.महाराज विशाल गडावर संध्याकाळी६वाजता पोहचले.म्हणजे महाराज घोडखिंडीत दुपारी१२च्या आसपास पोहचले .म्हणजे महराज्याना पन्हाळ गड ते पावनखिंड

येण्यासाठी जवळपास१५तास लागले हे अंतर ५०किलोमीटर आहे.
पावनखिंड ते विशाळगड फार दूर नाही १७किलोमीटर दूर आहे.

*२)*महत्वाचा मुद्दा महाराजांनी विशाळगड का निवडला?

त्याच उत्तर आहे.स्वराज्याच तोरण बांधताना महाराजांनी बरीच राजकारण केली आहेत.युद्ध न करता सर्व काही मिळवायचं स्वराज्य वाढवायचं .महाराष्ट्रात बरेच छोटे मोठे स्वयंघोषित राजे होते.त्यातील एक होते.जावळीत मोरे जवळी ८संघ राज्य होती.त्याचा एक प्रमुख होता तो राव बिरुद धारण करी.हणमंतराव मोरे ह्यांची मुलगी उपवर होती.म्हणून महाराजांनी हणमंतराव मोरेशी सोयरिकेचे बोलणे केले.पण आडदांड मोरेने नकार दिला.पण हीच संधी पाहून विशालगडावरील शंकरराय मोरे ह्यांनी संधी साधली आणि आपली उपवर मुलगी शिवरायांना दिलि.लक्ष्मीबाईसाहेब शिवराज्ञी झाली.शंकरराय मोरे ह्यांनी विचारपूर्वक निर्णय घेतला म्हणून महाराजांनी त्यांना विरारे म्हटलं


पुढे मोरे ,विचारे उपनाम पावले.

आपल्याला एक गोष्ट लक्षात येईल कि महाराज न सांगता विशाळगडावर का गेले.कारण ते लक्ष्मीबैसाहेबांच माहेर आहे .आणि तीथे दगाफटका नाही होणार हे महाराजांना माहित होते.



*३)*आता आपण पाहू कि बाजी ना खिडीत ६तास का राहावं लागले.     



बाजी आणि महाराज्याचं खिंडीत बोलणं झालं .आम्ही विशाळगड गाठतो आणि थोफांचे तीन बार करतो तुमी निघोन येणे.पावनखिंड ते विशालगड १७किलोमीटर आहे.म्हणजे फार लांब नाही आणि आता दिवस आहे. आणि तितपर्यंत तुम्ही खिंडलढवा.पण विशालगडला विजापुरी सरदारांचा वेढा होता हे महाराजांना माहित नोव्हत.पालवणीचा यशवंतराव दळवी व शृंगारपूरचा सूर्यराव चव्हाण उर्फ सुर्वे आणि महाराजांना तेथे तुंबळ युद्ध करावं लागलं कारण तेहि याच मातीतले कडवी झुंज द्यावी लागली.


बाजी इथे चिंतेत होते कि महाराज का फोहचले नाहीत आपण खिंड सोडून विशालगडाकडे गेलो तर अनर्थ होईल विजापुरी सैनाईकांचा लोंढा रोखणे कठीण होईल .बाजींनी आपली दिलेली जवाबदारी सांभाळली खिंड झुंझवत ठेवली.जर विशालगडला वेढा नसता तर इतिहास वेगळा असता.पण देवालाही ह्या क्षणाची प्रतीक्षा होती.आणि तो रणसंग्राम ह्या घोडखडीत झाला.महाराज्यांची त्या खिंडीच नाव बदलून पावनखिंड ठेवलं.



*४)*किल्ले विशालगडाहुन शिवराय किल्ले राजगडावर जाताना वाटेत अगत्याने बाजी प्रभूंच्या  सिंद गावी गेले.बाजींची आई दिपाईआवा व मंडळींचे सांत्वन केले.दिपाईआवाच्या विनंतीस मन देऊन शिवरायांनी बाजींच्या जेष्ठ पुत्रास महादजी उर्फ मायाजी ह्यास सरदारी दिली.इतर सात पुत्रांना पालखीचा मान व तैनाती दिल्या.बांदलांच्या माणसाना गडावर कारखानदारी वतने दिली.राजगडच्या दरबारात आणखी एक निर्णय घेतला गेला.प्रतापगडाच्या युद्धात जेधे ह्यांच्या जमावाने मर्दुमकी गाजविली.त्यामुळे कान्होजी जेधे ह्यांच्या जमावास दरबारात शिवरायांना तरवारीच्या पात्याने प्रथम मुजरा करावयाचा मान मिळाला होता.(स्वार्ड ऑफ ऑनर)कान्होजींनी समजूत घालून तो मान परत मागितला.कान्होजींनी संमती देताच,घोडखिंडीतील बांदल जमावाचा पराक्रम अतुलनीय,त्यागश्रेष्ठ हे जाणून बांदलास शिवरायांना दरबारात तरवरीच्या पात्याने मुजरा करण्याचा मान शिवरायांनी दिला. घोडखिंडीतील युद्ध श्रेष्ठ मानले गेल्याचा हा पुरावा.ह्यामुळे बाजी प्रभूंचे बलिदान शिवदरबारात आणि इतिहासात श्रेष्ठ ठरले.


*🚩जय भवानी🚩*


( वरील माहिती मी आषाढ पौर्णिमेला आणि वद्य प्रतिपदेला क्रमशः लिहली हाती .आपणास हि माहिती मी एकत्र करून पाठवली आहे.आपणास लिखाणात काही चुकीचं वाटलं तर नक्की सांगा.)
लेखनसीमा..
मर्यादेयविराजते...
धन्यवाद.............!!
📖लेखक-गुरुवर्य श्री.आप्पा परब
संदर्भ.पावनखिंड
📝लेखन-श्री.भूषण हरिश्चंद्र ठाकूर
(९०२९४५९६८७)