Sunday 27 November 2016

पेप्सी ये दिल मांगे मौत


पेप्सी ये दिल मांगे मौत
Pepsi और CocaCola राजीव दीक्षित जी कि कलम से !
भारत के कई वैज्ञानिकों ने पेप्सी और कोका कोला पर रिसर्च करके बताया कि इसमें मिलाते क्या हैं | पेप्सी और कोका कोला वालों से पूछिये तो वो बताते नहीं हैं, कहते हैं कि ये फॉर्मूला टॉप सेक्रेट है, ये बताया नहीं जा सकता | लेकिन आज के युग में कोई भी सेक्रेट को सेक्रेट बना के नहीं रखा जा सकता | तो उन्होंने अध्ययन कर के बताया कि इसमें मिलाते क्या हैं, तो वैज्ञानिको का कहना है इसमे कुल 21 तरह के जहरीले कैमिकल मिलाये जाते हैं !
कुछ नाम बताता हूँ !इसमें पहला जहर जो मिला होता है - सोडियम मोनो ग्लूटामेट, और वैज्ञानिक कहते हैं कि ये कैंसर करने वाला रसायन है, फिर दूसरा जहर है - पोटैसियम सोरबेट - ये भी कैंसर करने वाला है, तीसरा जहर है - ब्रोमिनेटेड वेजिटेबल ऑइल (BVO) - ये भी कैंसर करता है | चौथा जहर है - मिथाइल बेन्जीन - ये किडनी को ख़राब करता है, पाँचवा जहर है - सोडियम बेन्जोईट - ये मूत्र नली का, लीवर का कैंसर करता है, फिर इसमें सबसे ख़राब जहर है - एंडोसल्फान - ये कीड़े मारने के लिए खेतों में डाला जाता है और ऊपर से होता है ऐसे करते करते इस में कुल 21 तरह के जहर मिलये जाते हैं !
PraviN SuryavanshI - 25 de abril de 2013 - denunciar abuso
ये 21 तरह के जहर तो एक तरफ है और हमारे देश के पढ़े लिखे लोगो के दिमाग का हाल देखिये -बचपन से उन्हे किताबों मे पढ़ाया जाता है ! की मनुष्य को प्राण वायु आक्सीजन अंदर लेनी चाहिए और कार्बन डाईऑक्साइड बाहर निकलनी चाहिए ये जानने के बावजूद भी गट गट कर उसे पे रहे हैं !और पीते ही एक दम नाक मे जलन होती और वो सीधा दिमाग तक जाती है !और फिर दूसरा घूट भरते है गट गट गट !
और हमारा दिमाग इतना गुलाम हो गया है ! आज हम किसी बिना coke pepsi के जहर के किसी भी शादी विवाह पार्टी के बारे मे सोचते भी नही !कार्बन डाईऑक्साइड - जो कि बहुत जहरीली गैस है और जिसको कभी भी शरीर के अन्दर नहीं ले जाना चाहिए और इसीलिए इन कोल्ड ड्रिंक्स को "कार्बोनेटेड वाटर" कहा जाता है | और इन्ही जहरों से भरे पेय का प्रचार भारत के क्रिकेटर और अभिनेता/अभिनेत्री करते हैं पैसे के लालच में, उन्हें देश और देशवाशियों से प्यार होता तो ऐसा कभी नहीं करते |
पहले अमीर खान ये जहर बिकवाता था अब उसका भांजा बिकवाता है ! अमिताभ बच्चन,शरूखान ,रितिक रोशन लगभग सबने इस कंपनी का जहर भारत मे बिकवाया है !क्यूंकि इनके लिए देश से बड़ा पैसा है !
PraviN SuryavanshI - 25 de abril de 2013 - denunciar abuso
पूरी क्रिकेट टीम इस दोनों कंपनियो ने खरीद रखी है ! और हमारी क्रिकेट टीम की कप्तान धोनी जब नय नय आये थे! तब मीडिया मे ऐसे खबरे आती थी ! रोज 2 लीटर दूध पीते हैं धोनी ! ये दूध पीकर धोनी बनने वाला धोनी आज पूरे भारत को पेप्सी का जहर बेच रहा है ! और एक बात ध्यान दे जब भी क्रिकेट मैच की दौरान water break होती है तब इनमे से कोई खिलाड़ी pepsi coke क्यूँ नहीं पीता ??? ?? क्यूँ कि ये सब जानते है ये जहर है ! इन्हे बस ये देश वासियो को पिलाना है !
ज्यादातर लोगों से पूछिये कि "आप ये सब क्यों पीते हैं ?" तो कहते हैं कि "ये बहुत अच्छी क्वालिटी का है" | अब पूछिये कि "अच्छी क्वालिटी का क्यों है" तो कहते हैं कि "अमेरिका का है" | और ये उत्तर पढ़े-लिखे लोगों के होते हैं |
तो ऐसे लोगों को ये जानकारी दे दूँ कि अमेरिका की एक संस्था है FDA (Food and Drug Administration) और भारत में भी ऐसी ही एक संस्था है, उन दोनों के दस्तावेजों के आधार पर मैं बता रहा हूँ कि, अमेरिका में जो पेप्सी और कोका कोला बिकता है और भारत में जो पेप्सी-कोक बिक रहा है, तो भारत में बिकने वाला पेप्सी-कोक, अमेरिका में बिकने वाले पेप्सी-कोक से 40 गुना ज्यादा जहरीला होता है, सुना आपने ? 40 गुना, मैं प्रतिशत की बात नहीं कर रहा हूँ | और हमारे शरीर की एक क्षमता होती है जहर को बाहर निकालने की, और उस क्षमता से 400 गुना ज्यादा जहरीला है, भारत में बिकने वाला पेप्सी और कोक | तो सोचिए बेचारी आपकी किडनी का क्या हाल होता होगा !जहर को बाहर निकालने के लिए !ये है पेप्सी-कोक की क्वालिटी, और वैज्ञानिकों का कहना है कि जो ये पेप्सी-कोक पिएगा उनको कैंसर, डाईबिटिज, ओस्टियोपोरोसिस, ओस्टोपिनिया, मोटापा, दाँत गलने जैसी 48 बीमारियाँ होगी |
PraviN SuryavanshI - 25 de abril de 2013 - denunciar abuso
पेप्सी-कोक के बारे में आपको एक और जानकारी देता हूँ - स्वामी रामदेव जी इसे टॉयलेट क्लीनर कहते हैं, आपने सुना होगा (ठंडा मतलब टाइलेट कालीनर )तो वो कोई इसको मजाक में नहीं कहते या उपहास में नहीं कहते हैं,देश के पढ़े लिखे मूर्ख लोग समझते है कि ये बात किसी ने ऐसे ही बना दी है !
इसके पीछे तथ्य है, ध्यान से पढ़े !तथ्य ये कि टॉयलेट क्लीनर harpic और पेप्सी-कोक की Ph value एक ही है | मैं आपको सरल भाषा में समझाने का प्रयास करता हूँ | Ph एक इकाई होती है जो acid की मात्रा बताने का काम करती है !और उसे मापने के लिए Ph मीटर होता है | शुद्ध पानी का Ph सामान्यतः 7 होता है ! और (7 Ph) को सारी दुनिया में सामान्य माना जाता है, और जब पानी में आप हाईड्रोक्लोरिक एसिड या सल्फ्यूरिक एसिड या फिर नाइट्रिक एसिड या कोई भी एसिड मिलायेंगे तो Ph का वैल्यू 6 हो जायेगा, और ज्यादा एसिड मिलायेंगे तो ये मात्रा 5 हो जाएगी, और ज्यादा मिलायेंगे तो ये मात्रा 4 हो जाएगी, ऐसे ही करते-करते जितना acid आप मिलाते जाएंगे ये मात्रा कम होती जाती है | जब पेप्सी-कोक के एसिड का जाँच किया गया तो पता चला कि वो 2.4 है और जो टॉयलेट क्लीनर होता है उसका Ph और पेप्सी-कोक का Ph एक ही है, 2.4 का मतलब इतना ख़राब जहर कि आप टॉयलेट में डालेंगे तो ये झकाझक सफ़ेद हो जायेगा | इस्तेमाल कर के देखिएगा |
PraviN SuryavanshI - 25 de abril de 2013 - denunciar abuso
और हम लोगो का हाल ये है ! घर मे मेहमान को आती ये जहर उसके आगे करते है ! दोस्तो हमारी महान भारतीय संस्कृति मे कहा गया है ! अतिथि देवो भव ! मेहमान भगवान का रूप है ! और आप उसे टॉइलेट साफ पीला रहे हैं !!
अंत मे राजीव भाई कहते हैं ! कि देश का युवा वर्ग सबसे ज्यादा इस जहर को पीता ! और नपुंसकता कि बीमारी सबसे ज्यादा ये जहर पीकर हो रही है ! और कहीं न कहीं मुझे लगता है ! ये pepsi coke पूरी देश पूरी जवान पीढ़ी को खत्म कर देगा ! इस लिए हम सबको मिलकर स्कूलों कालेजो मे जा जा कर बच्चो को समझना चाहिए ! राजीव भाई जा कहना है ! आप बस स्कूल कालेजो मे जाते ही उनके सामने इस pepsi coke से वहाँ का टाइलेट साफ कर के दिखा दी जीए ! एक मिनट ही वो मान जाएंगे !
PraviN SuryavanshI - 25 de abril de 2013 - denunciar abuso
और बच्चे अगर मान गये तो उनके घर वाले खुद पर खुद मान जाएंगे ! वो एक कहावत हैं न son is a father of father ! बच्चा बाप का बाप होता है ! तो बच्चो को समझाये ! बच्चे ये जहर छोड़े बड़े छोड़े और इस दोनों अमेरीकन कंपनियो को अपने देश भगाये ! जैसे हमने east india company को भगाया था !!
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राजीव भाई कहते हैं 1997 मे जब उन्होने पेप्सी और कोक के खिलाफ अभियान शुरू किया था तो वो अकेले थे लेकिन आज भारत में 70 संस्थाएं हैं जो पेप्सी-कोक के खिलाफ अभियान चला रहीं हैं, हम खुश हैं कि इनके बिक्री में कमी आयी है | और इनकी 60 % sale कम हुई ! 1997 मे ये दोनों कंपनिया कुल 700 करोड़ बोतल बेचती थी ! और आज भी बहुत ज्यादा है ! लेकिन अगर हम सब संकल्प ये जहर न खुद पीये गे न किसी को पिलएंगे ! तो ये 50 करोड़ बोतले बिकनी भी बंद हो जायगी !और ये दोनों कंपनिया अपने देश अमेरिका भाग जाएंगी !
यहाँ जरूर जरूर click करे !
http://www.youtube.com/watch?v=XmzcYwFyObc

Monday 21 November 2016

शिवाजी महाराज आणि हिंदुत्व


संभाजी ब्रिगेड - मराठा सेवा संघ आणि काँग्रेस  आघाडी यांच्याकडून एक नित्यनेमाने केला जाणारा आरोप म्हणजे - "हिंदुत्ववादी लोक शिवाजी महाराजांचा सत्ता मिळवण्यासाठी,हिंदू-मुसलमान दंगली घडविण्यासाठी  वापर करतात. "
असे म्हणतात कि "शिवाजी महाराज अंडर ग्राउंड इन भीमनगर मोहल्ला" हे नाटक याच आरोपाविषयी आणि हिंदुत्ववादी लोकांना खोटे ठरवण्यासाठी बनवण्यात आले आहे.
मी हे नाटक पाहिले नसल्याने, या नाटकाविषयी चर्चा मला अभिप्रेत नाही.


तथापि, माझ्यासारख्या कुठल्याही सामान्य हिंदुत्ववादी माणसाची "शिवाजी महाराजांकडे" पाहण्याची वृत्ती कशी आहे, अथवा हिंदुत्ववादी संघाचे कार्य जवळून पाहिलेल्या लोकांना, याविषयी अवलोकन करता, संभाजी ब्रिगेडचा उपरोक्त आरोप धादांत खोटा  ठरतो.


yashdeep joshi - 2 de julho de 2013 - denunciar abuso

धाग्याच्या प्रारंभीच एक समजून घ्यायला हवे, जगात जिथेजिथे मुसलमान आहेत, त्या सर्वच देशांत सध्या प्रचंड हिंसाचार चालू आहे.
किंबहुना मुसलमान लोकांत "सुन्नी विरुद्ध शिया", "वाहब्बी विरुद्ध अहमदी", हा इतका पराकोटीचा संघर्ष झाला आहे, कि दोन्ही पंथ एकमेकांचे मानवी अस्तित्व मान्य करण्यास तयार नाहीत. गेल्या १०  वर्षांत पाकिस्तानात शिया मुसलमानांच्या अनेक मस्जिद उध्वस्त करण्यात आल्या आहेत.
हे समस्त हिंसाचार हे शिवाजी महाराजांच्या नावाने झालेले नाहीत, व त्यात हिंदुत्ववादी लोकांचाही हात नाही.
माझ्या पाहण्यात, जगात असा एकही इस्लामेतर समाज नाही, जांच्याशी मुसलमानांचा हिंसाचार झालेला नसेल, १०० टक्के समस्त समुदाय कधी न कधी या हिंसाचाराने ग्रस्त झालेलेच आहेत.
तद्वतच भारताचेही आहे.  भारतात झालेले "हिंदू-मुसलमान संघर्ष" हे हिंदुत्ववादी लोकांमुळे क्वचिदपि झालेले नाहीत.



अर्थात महाराष्ट्राबाहेरचा भूगोल फारसा संभाजी ब्रिगेडला परिचित नसल्याने, जागतिक हिंसाचाराचे विश्लेषण करण्याएवढी अक्कल असण्याची अपेक्षा बी-ग्रेडी लोकांकडून बाळगणे व्यर्थ आहे.
काँग्रेस आघाडीला निवडणुका जिंकून देणे हेच बी-ग्रेडी कार्यकर्त्यांचे प्रमुख उद्दिष्ट असल्याने, जागतिक हिंसाचाराचे विश्लेषण ते करणारही नाहीत.
संभाजी ब्रिगेडने सन्मानित केलेल्या बौद्ध धर्माची बहुसंख्य असलेल्या म्यानमार देशातही "बौद्ध विरुद्ध मुसलमान" असे अत्यंत तीव्र हिंसाचार झालेले आहेत.


yashdeep joshi - 2 de julho de 2013 - denunciar abuso

धाग्याच्या प्रारंभीच एक समजून घ्यायला हवे कि , शिवाजी महाराज हे हिंदुत्ववादी लोकांसाठी प्रेरणास्थान आहेत, मात्र याचा अर्थ "हिंदुत्व म्हणजेच शिवाजी महाराज अथवा शिवाजी महाराज म्हणजेच हिंदुत्व " असा कदापि होत नाही.
इतिहासाचे प्रामाणिकपणे अवलोकन केल्यास तुम्हाला जाणवेल कि
"परकीय सत्ता धिक्कारण्यासाठी एतद्देशीय हिंदू साम्राज्य निर्माण केले पाहिजे, हा विचारदेखील शिवाजी महाराजांच्या अनेक शतके आधीपासूनच या देशात उदयास आला आहे - तद्वत प्रयत्नदेखील सिंध-पंजाब पासून ते आसाम - आन्ध्रापर्यंत अनेक प्रांतात झाला होता.
तथापि, शिवाजी महाराज हे सर्वगुणसंपन्न असल्यामुळे मुघलांच्या कचाट्यात सापडलेल्या रयतेला एक न्याय देणारे साम्राज्य निर्माण करण्यात व आशेचा किरण दर्शविण्यात ते निश्चित यशस्वी झाले .
तथापि असे यश संपादन करणारे ते एकमेव होते असेही नाही.
तसे म्हणणे हे महाराणा प्रताप, विजयनगर साम्राज्य - छत्रसाल आदी कर्तृत्ववान लोकांचा अवमान केल्याप्रमाणे होईल.


yashdeep joshi - 2 de julho de 2013 - denunciar abuso


धाग्याच्या प्रारंभीच एक समजून घ्यायला हवे कि , शिवाजी महाराज हे हिंदुत्ववादी लोकांसाठी प्रेरणास्थान आहेत.
मात्र जसे शिवाजी महाराज प्रेरणास्थान आहेत, त्याप्रमाणेच स्वामी विवेकानंद , महाराणा प्रताप , राजा कृष्णदेवराय , विद्यारण्य स्वामी असे करता-करता आधुनिक काळातील हिंदुहृदयसम्राट बाळासाहेब आदी अनेक लोक प्रेरणास्थान आहेत .
हे मी विशेषत्वाने आवर्जून येथे सांगू इच्छितो कि , हिंदुत्ववादी लोकांमधून शिवाजी महाराज filter केले कि हिदुत्ववादी चळवळ नेस्तनाभूत होइल, असे संभाजी ब्रिगेडला  वाटत असेलही. परंतु तसे होणार नाही ,
मुळातच हिंदुत्ववादी लोकांसाठी शिवाजी महाराज सदैव प्रेरणास्थान राहतील व त्यांनी दिलेला विचार समस्त आर्यावर्तात सदैव विविध लोकांनी मांडला असल्यामुळे, हिंदुत्ववादी चळवळ नेस्तनाभूत होणार नाही.




yashdeep joshi - 2 de julho de 2013 - denunciar abuso


आता विषय येतो सत्तेचा .
मुळातच हिंदुत्ववादी लोकांचा संबंध या देशातील 5000 वर्षांच्या संस्कृतीशी आहे. त्यात अनेक चढ - उतार आले, अनेक वाईट प्रथा आल्या, अनेक अमानुष चालीरीती आल्या , जातीभेद आले - सर्वच आले.
जिथे जिथे हिंदुत्व हा विषय असतो, तिथे तिथे या सर्व अमानुष गोष्टींचे दुष्परिणाम व त्यातून देशाचे झालेले नुकसान आदी अनेक विषय चर्चेला आलेच पाहिजेत, व सावरकरांनी त्याविषयी निश्चित पुढाकार घेतला होता.
या सर्व विषयांची व्याप्तीच एवढी मोठी आहे , कि केवळ शिवाजी महाराज एके शिवाजी महाराज असा अजेंडा हिंदुत्ववादी लोक घेऊच शकत नाहीत .




दुसरीकडे काँग्रेस आघाडी शिवाजी महाराजांच्या नावाचा वापर करतच नाही, असेही नाही. "शिवाजी महाराज - शाहू - फुले - आम्बेडकर" आदी समस्त नावांचा कोन्ग्रेस आघाडी निवडणुकीत सातत्याने वापर करतच असते.
आपल्यापैकी अनेकांना हे ज्ञात असेलच कि संभाजी ब्रिगेडचे अनेक कार्यकर्ते  निवडणुकीत कोन्ग्रेस व घड्याळजी यांसाठी कार्य करतात व घड्याळवाले नेतेच बी-ग्रेडी लोकांची भाषणे - पत्रके - प्रचारफे-या आयोजित करतात.



पुण्यातही काँग्रेस पक्षाच्याच एका वरिष्ठ नेत्याने, शिवसृस्तीला पर्यायी जागा देण्याची मान्यता दर्शविली असतानाही, कोथरूड भागातच शिवसृष्टी बांधण्याचा हट्ट धरून पुणे मेट्रोचा विकास आराखडा बदलणे भाग पाडले.


यातून हेच स्पष्टपणे जाणवत आहे, कि सेना-भाजपा यांपेक्षा कितीतरी अधिक प्रमाणात काँग्रेस आघाडीच केवळ  शिवाजी महाराज नव्हे तर शाहू-फुले - आंबेडकर " या नेत्यांचा निवडणुकीत सत्ता प्राप्तीसाठी वापर करत आहे.



yashdeep joshi - 2 de julho de 2013 - denunciar abuso


उपरोक्त समस्त मुद्दे अभ्यासता हे स्पष्ट जाणवेल ,कि उपरोक्त आरोप, "हिंदुत्ववादी लोक शिवाजी महाराजांचा सत्ता मिळवण्यासाठी,हिंदू-मुसलमान दंगली घडविण्यासाठी  वापर करतात,"  धादांत खोटा  ठरतो.


Mangesh J - 2 de julho de 2013 - denunciar abuso



हिन्दुत्ववादी शिवाजी महाराज यानि स्थापिलेले राज्य आदर्श मानतात ....आणि तसेच हिन्दू राष्ट्र (नविन कालानुकुल ) करायचे आहे ..मग त्याला नाव का्य द्यायचे हा ज्याचा त्याचा प्रश्न



Kaustubh Gurav - 4 de julho de 2013 - denunciar abuso


शिवाजी महाराज ह्यांची कॉंग्रेसला पूर्वी होती. नेहरूंनी त्यांना दरवडेखोर तर गांधीनी वाट चुकलेले देशभक्त म्हणले होते.  नंतर शिवसेना आली.  शिवाजी महाराज म्हणजे शिवसेना अशी भीती वाटून कोन्ग्रेजी मंडळी शिवाजी राजांचे कार्यक्रम करेनात.
 पुढे अंतुले सिएम झाले तेव्हा कुठे कॉंग्रेसच्या व्यासपीठावर शिवाजी महाराज येवू लागले. कुलाबा जिल्ह्याच रायगड हे नामांतर  त्यांनीच केल.
बाकी तुझे मुद्दे बरोबर आहेत. शिवाजी राजांप्रमाणे अनेक प्रेरणास्थळ हिंदुना आहेत पण राजांचे स्थान त्यात सर्वात वरचे आहे  आणि राहील


Shailendrasingh Patil - 4 de julho de 2013 - denunciar abuso


कोणी कोणाला प्रेरणास्थान मानावे हा ज्याचा त्याचा प्रश्न आहे. फ़क्त ज्यांना प्रेरणास्थान आपण मानतो आहोत त्यांची तत्व पुढे न्यावीत. अन्यथा "मुंह मैं राम, बगल मैं छुरी" असाच प्रकार सगळ्या राजकिय पक्षांचा असतो.
मुळात राजकिय पक्ष-संघटना हा काय प्रकार आहे ते समजुन घ्यायला हवा. राजकिय पक्षांमधे जमलेली मंडळी ही काही शिवाजी महाराजांचे मावळे नसतात. पक्षाचे ध्येयधोरणांशी त्यांना फ़ारसे देणेघेणेही नसते. ती कागदावरच असतात. ह्या मंडळींच पहिलं लक्ष असतं ते संघटनेमधे स्वत:च महत्व सिद्ध करण्याचं. त्यासाठी ते सतत स्वत:च्या पक्षाच्या ध्येयधोरणांचा जाप करत असतात आणि आपणच कसे विचारांशी एकनिष्ठ आहोत हे दाखवायचा प्रयत्न असतो. जेव्हा ह्यांना संघटनेत कोणी विचारत नाहीत आणि मग त्यांना दुसरी संघटना घ्यायला तयार झाली की ते दुसऱ्या संघटनेत जाऊन तिथल्या ध्येयधोरणांचा जाप करायला लागतात.
आजचा हिंदुत्ववादी दुसऱ्या दिवशी कॉंग्रेसी होतो. शेवटी प्रत्येकाच्या काहीतरी आकांक्षा असतात, ज्यांना फ़क्त ध्येयधोरणांचा प्रचार करायचा असतो ते राजकारण का करतील? राजकारण तर आर्थिक हितसंबंध जपण्यासाठीच केलं जातं.



तेव्हा उगाच शिवाजी महाराजांच्या विचारांची मक्तेदारी आपल्याच संघटनेकडे आहे असं दाखवणं हा प्रामाणिकपणा निश्चितच नाही. पण राजकारणात प्रामाणिक असण्यापेक्षा यशस्वी असायला महत्व आहे.



Mangesh J - 4 de julho de 2013 - denunciar abuso

राजकरानाच्या बाबतीत ल्या मताशी सहमत ..पण हिन्दुत्ववादी म्हनजेच राजकारणी असे समीकरण गृहीत धरु नयेत ..


Mangesh J - 4 de julho de 2013 - denunciar abuso

तेव्हा उगाच शिवाजी महाराजांच्या विचारांची मक्तेदारी आपल्याच संघटनेकडे आहे असं दाखवणं हा प्रामाणिकपणा निश्चितच नाही
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बाकिंचे  माहित नाही ..मात्र संघाने महाराजांच्या विचारांची मक्तेदारी आपल्याच संघटनेकडे आहे  असे कधीही म्हंटले नाही  ...
Shailendrasingh Patil - 4 de julho de 2013 - denunciar abuso
Mangesh J:




राजकरानाच्या बाबतीत ल्या मताशी सहमत ..पण हिन्दुत्ववादी म्हनजेच राजकारणी असे समीकरण गृहीत धरु नयेत ..
अर्थातच. पण हिंदुत्ववादी राजकारणी इतरांपेक्षा वेगळे आहेत असा दावा करु नये. प्रत्येक जण महापुरुषांच्या प्रतिमेचा स्वत:साठी फ़ायदा कसा करुन घ्यायचा ह्याच प्रयत्नात असतो. केवळ शाहु-फ़ुले-आंबेडकरांचे नाव घेऊन हिंदुत्ववादी प्रचार करायला गेलेत तर त्यांची स्वत:ची वोटबॅंकही उरणार नाही, म्हणुन प्रचाराच्या वेळी ते फ़क्त शिवाजीमहाराजांपर्यंत थांबतात.




Shailendrasingh Patil - 4 de julho de 2013 - denunciar abuso
Mangesh J:
तेव्हा उगाच शिवाजी महाराजांच्या विचारांची मक्तेदारी आपल्याच संघटनेकडे आहे असं दाखवणं हा प्रामाणिकपणा निश्चितच नाही
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बाकिंचे  माहित नाही ..मात्र संघाने महाराजांच्या विचारांची मक्तेदारी आपल्याच संघटनेकडे आहे  असे कधीही म्हंटले नाही  ...
संघ तर भाजपाची मक्तेदारीही आपल्याकडे आहे असंही कधी म्हणत नाही. कोण काय म्हणतं हे महत्वाचं नसतं. आपण शिवाजी महाराजांना जेव्हा आदर्श मानतो तेव्हा आपणच तेव्हढे खरे आदर्शवादी आणि इतर खोटारडे असं ह्या लेखातुन प्रतित होत होतं, त्यासंदर्भात लिहिलेलं वाक्य आहे, संघाचा काही संबंध नाही त्यात.






Mangesh J - 4 de julho de 2013 - denunciar abuso
 पण हिंदुत्ववादी राजकारणी इतरांपेक्षा वेगळे आहेत असा दावा करु नये.
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हो पण कांग्रेस किंवा गंधिचे नाव घेणार्या राजकारान्यपेक्षा नक्कीच चांगले आहेत असे मला वाटते
yashdeep joshi - 4 de julho de 2013 - denunciar abuso
संघ तर भाजपाची मक्तेदारीही आपल्याकडे आहे असंही कधी म्हणत नाही. कोण काय म्हणतं हे महत्वाचं नसतं. आपण शिवाजी महाराजांना जेव्हा आदर्श मानतो तेव्हा आपणच तेव्हढे खरे आदर्शवादी आणि इतर खोटारडे असं ह्या लेखातुन प्रतित होत होतं,


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 नाही. मी माझ्या प्रतिक्रियेत "आम्हीच तेवढे आदर्शवादी आणि बाकीचे खोटारडे" असे कधीही म्हंटलेले नाही.
मात्र संभाजी ब्रिगेडने हिंदुत्ववादी लोकांवर लावलेल्या अनंत चुकीच्या आरोपांपैकी, "हिंदुत्ववादी लोक शिवाजी महाराजांच्या नावाने हिंदू मुस्लिम दंगल घडवून आणतात", या आरोपाचे खंडन मी माझ्या लेखनात केले आहे."
मुळात हिंदू-मुस्लिम दंगल घडवणे हा हिंदुत्ववादी लोकांचा अजेंडा नाही.
म्हणूनच मी आवर्जून सांगितले कि - "धाग्याच्या प्रारंभीच एक समजून घ्यायला हवे, जगात जिथेजिथे मुसलमान आहेत, त्या सर्वच देशांत सध्या प्रचंड हिंसाचार चालू आहे.



किंबहुना मुसलमान लोकांत "सुन्नी विरुद्ध शिया", "वाहब्बी विरुद्ध अहमदी", हा ( अंतर्गत हिंसाचार) इतका पराकोटीचा संघर्ष झाला आहे, कि दोन्ही पंथ एकमेकांचे मानवी अस्तित्व मान्य करण्यास तयार नाहीत. गेल्या १०  वर्षांत पाकिस्तानात शिया मुसलमानांच्या अनेक मस्जिद उध्वस्त करण्यात आल्या आहेत.
हे समस्त हिंसाचार हे शिवाजी महाराजांच्या नावाने झालेले नाहीत, व त्यात हिंदुत्ववादी लोकांचाही हात नाही.




SANDESH, HOW GREEN WAS MY VALLEY - 5 de julho de 2013 - denunciar abuso
Shailendrasingh Patil:


कोणी कोणाला प्रेरणास्थान मानावे हा ज्याचा त्याचा प्रश्न आहे. फ़क्त ज्यांना प्रेरणास्थान आपण मानतो आहोत त्यांची तत्व पुढे न्यावीत. अन्यथा "मुंह मैं राम, बगल मैं छुरी" असाच प्रकार सगळ्या राजकिय पक्षांचा असतो.
मुळात राजकिय पक्ष-संघटना हा काय प्रकार आहे ते समजुन घ्यायला हवा. राजकिय पक्षांमधे जमलेली मंडळी ही काही शिवाजी महाराजांचे मावळे नसतात. पक्षाचे ध्येयधोरणांशी त्यांना फ़ारसे देणेघेणेही नसते. ती कागदावरच असतात. ह्या मंडळींच पहिलं लक्ष असतं ते संघटनेमधे स्वत:च महत्व सिद्ध करण्याचं. त्यासाठी ते सतत स्वत:च्या पक्षाच्या ध्येयधोरणांचा जाप करत असतात आणि आपणच कसे विचारांशी एकनिष्ठ आहोत हे दाखवायचा प्रयत्न असतो. जेव्हा ह्यांना संघटनेत कोणी विचारत नाहीत आणि मग त्यांना दुसरी संघटना घ्यायला तयार झाली की ते दुसऱ्या संघटनेत जाऊन तिथल्या ध्येयधोरणांचा जाप करायला लागतात.
आजचा हिंदुत्ववादी दुसऱ्या दिवशी कॉंग्रेसी होतो. शेवटी प्रत्येकाच्या काहीतरी आकांक्षा असतात, ज्यांना फ़क्त ध्येयधोरणांचा प्रचार करायचा असतो ते राजकारण का करतील? राजकारण तर आर्थिक हितसंबंध जपण्यासाठीच केलं जातं.

तेव्हा उगाच शिवाजी महाराजांच्या विचारांची मक्तेदारी आपल्याच संघटनेकडे आहे असं दाखवणं हा प्रामाणिकपणा निश्चितच नाही. पण राजकारणात प्रामाणिक असण्यापेक्षा यशस्वी असायला महत्व आहे.
यशस्वी राजकारणी कोण ??

आपल्या स्वधर्माला लाथाडून सत्तेसाठी अत्यंत अधम अशा पर धर्मियांना जवळ करणारे ??
वर्षानुवर्षे अमर्याद सत्ता उपभोगणारे आणि सर्वसामान्यांच्या मुलभूत गरजाही अजून न भागवणारे ??
दुस- याने केलेल्या सुधारणाचे श्रेय  बिनदिक्कतपणे लाटणारे ??

गांधीजींचे नाव घेऊन अहिंसेचा दांभिक पुरस्कार करून छुप्या पद्धतीने हिंसाचाराला आणि नक्षलवादाला पाठींबा देणारे ??
वेग वेगळ्या क्लृप्त्या लढवून जनतेवर विविध  करांचा बोजा लादून जनतेला बेजार करून स्वतः मजा मारणारे ??



Shailendrasingh Patil - 6 de julho de 2013 - denunciar abuso

yashdeep joshi:
संघ तर भाजपाची मक्तेदारीही आपल्याकडे आहे असंही कधी म्हणत नाही. कोण काय म्हणतं हे महत्वाचं नसतं. आपण शिवाजी महाराजांना जेव्हा आदर्श मानतो तेव्हा आपणच तेव्हढे खरे आदर्शवादी आणि इतर खोटारडे असं ह्या लेखातुन प्रतित होत होतं,
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 नाही. मी माझ्या प्रतिक्रियेत "आम्हीच तेवढे आदर्शवादी आणि बाकीचे खोटारडे" असे कधीही म्हंटलेले नाही.
मग ह्याचा अर्थ काय? अगदी ठळक अक्षरात लिहिलं आहे तुम्ही.
yashdeep joshi:
यातून हेच स्पष्टपणे जाणवत आहे, कि सेना-भाजपा यांपेक्षा कितीतरी अधिक प्रमाणात काँग्रेस आघाडीच केवळ  शिवाजी महाराज नव्हे तर शाहू-फुले - आंबेडकर " या नेत्यांचा निवडणुकीत सत्ता प्राप्तीसाठी वापर करत आहे.
yashdeep joshi - 6 de julho de 2013 - denunciar abuso

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मग ह्याचा अर्थ काय? अगदी ठळक अक्षरात लिहिलं आहे तुम्ही.
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तेच तर मी म्हणालो कि
संभाजी ब्रिगेडच्या आरोपानुसार - "हिंदुत्ववादी" लोक अगोदर शिवाजी महाराजांचे नावाने हिंदू-मुस्लिम दंगली घडवून आणतात आणि त्यातून सत्ता प्राप्त करतात.
प्रत्यक्षात शिवाजी महाराजांचा वापर अलीकडच्या काळात कोन्ग्रेस आघाडी निवडणुकांसाठी अधिक प्रमाणात  करत आहे.
दंगलींचे म्हणाल - तर धुळे शहरातील दंगलीला फक्त हॉटेलमधील 20 रुपयांच्या  भांडणाचे निमित्त झाले. तसेच भारतात सर्वाधिक हिंदू-मुसलमान दंगली समाजवादी पक्षाच्या ताब्यातील उत्तर प्रदेश राज्यात होत आहेत.
याउलट गुजरातमध्ये 2003 पासून गेल्या 10 वर्षांत एकही दंगल झालेली नाही.
तात्पर्य - ज्यांनी कोणी हिंदुत्ववादी लोकांवर उपरोक्त आरोप लावला, तो निराधार आहे.



Shailendrasingh Patil - 6 de julho de 2013 - denunciar abuso
SANDESH, HOW GREEN WAS MY VALLEY:
यशस्वी राजकारणी कोण ??
आपल्या स्वधर्माला लाथाडून सत्तेसाठी अत्यंत अधम अशा पर धर्मियांना जवळ करणारे ??
वर्षानुवर्षे अमर्याद सत्ता उपभोगणारे आणि सर्वसामान्यांच्या मुलभूत गरजाही अजून न भागवणारे ??
दुस- याने केलेल्या सुधारणाचे श्रेय  बिनदिक्कतपणे लाटणारे ??
गांधीजींचे नाव घेऊन अहिंसेचा दांभिक पुरस्कार करून छुप्या पद्धतीने हिंसाचाराला आणि नक्षलवादाला पाठींबा देणारे ??



वेग वेगळ्या क्लृप्त्या लढवून जनतेवर विविध  करांचा बोजा लादून जनतेला बेजार करून स्वतः मजा  मारणारे ??
सत्ता मिळवून आपल्या हितसंबधांचे आणि मतदारांचे हित जोपासणारे किंवा त्यांचे हित जोपासत आहोत असा आव आणणारे (जोवर जनता अनभिज्ञ आहे तोवर काय फ़रक पडतो).
हिंदुत्ववाद्यांना सत्ता मिळालीच होती की त्यांनी काय वेगळं केलं? असं वाटतं की त्यांना कॉंग्रेस इतकं एकत्र राहुन लोकांना लुटता नाही आलं, कॉंग्रेस मात्र गांधी घराण्याच्या कृपेने अजुन एकसंधपणे लुटते आहे.
तात्पर्य:



एकत्र रहा...तुम्हीही खा आणि इतरांनाही खाऊ द्या...फ़क्त मीच खाणार आणि इतरांना खाऊ नाही देणार म्हटलं की सत्ता मिळत नाही. त्याही प्रथम एक होऊन लढायला तर शिका.
नाहीतर शिवाजी महाराजांचा खरोखर आदर्श जोपासा, लोकांनी राज्याभिषेक करायला हवा...राज्याभिषेक करा म्हणुन लोकांच्या मागे लागू नका. एक अण्णा उपोषण करायला बसला तर ह्यांच्या लोकशाहीचे खांब डळमळले होते. लोकांना फ़क्त विश्वास वाटला पाहिजे तुमच्याबद्दल.




SANDESH, HOW GREEN WAS MY VALLEY - 6 de julho de 2013 - denunciar abuso
Shailendrasingh Patil:
सत्ता मिळवून आपल्या हितसंबधांचे आणि मतदारांचे हित जोपासणारे किंवा त्यांचे हित जोपासत आहोत असा आव आणणारे (जोवर जनता अनभिज्ञ आहे तोवर काय फ़रक पडतो).
हिंदुत्ववाद्यांना सत्ता मिळालीच होती की त्यांनी काय वेगळं केलं? असं वाटतं की त्यांना कॉंग्रेस इतकं एकत्र राहुन लोकांना लुटता नाही आलं, कॉंग्रेस मात्र गांधी घराण्याच्या कृपेने अजुन एकसंधपणे लुटते आहे.
तात्पर्य:

एकत्र रहा...तुम्हीही खा आणि इतरांनाही खाऊ द्या...फ़क्त मीच खाणार आणि इतरांना खाऊ नाही देणार म्हटलं की सत्ता मिळत नाही. त्याही प्रथम एक होऊन लढायला तर शिका.
नाहीतर शिवाजी महाराजांचा खरोखर आदर्श जोपासा, लोकांनी राज्याभिषेक करायला हवा...राज्याभिषेक करा म्हणुन लोकांच्या मागे लागू नका. एक अण्णा उपोषण करायला बसला तर ह्यांच्या लोकशाहीचे खांब डळमळले होते. लोकांना फ़क्त विश्वास वाटला पाहिजे तुमच्याबद्दल.


तुम्ही ही खा आणि इतराना खाऊ द्या.  अनेक जणांच्या तोंडून हे वाक्य ऐकलय बहुतेक लोक भ्रष्टाचारी
होते. भ्रष्टाचारी लोकाना ही काँग्रेस  नेहमीच हवी असते. कारण भ्रष्टाचार करून हे लोक पैसे कमावतात
आणि त्याचा हिस्सा त्याना सांभाळून घेणा-या भ्रष्ट कॉंग्रेस नेत्याना देतात. मग काय तेरी भी चूप आणि मेरी भी
चूप. म्हणजे हे मिळून खाणे फक्त या भ्रष्टाचारी वर्गापुरते मर्यादित राहते. थोडक्यात काय हे सत्ताधारी
राजकारणी, सरकारी नोकर आणि हा  भ्रष्टाचारी दलाल वर्ग असे मिळून पैसे खातात आणि सामान्य जनतेच्या
हाती काय लागते तर शून्य.  इतर पक्षाच्या राजकारण्याना इतक्या मोठ्या
 पातळीवरचा भ्रष्टाचार जमत नाही
आणि त्यामुळे सरकारी नोकर आणि या दलालांना
 पण ते नको असतात. मग भ्रष्टाचाराने मिळवलेला पैसा
अपरंपार उधळून हे काँग्रेसजन सत्ता मिळवून पुन्हा दुप्पट जोराने भ्रष्टाचार करून नि
वडणुकीत केलेल्या खर्चाच्या
कोत्येक पात अधिक पैसा मिळवतात. मग यांचे सुरु तुम्ही पण खा आम्ही पण खातो सामन्यां
च्या हाती काय ??
तर करवंटी.



SANDESH, HOW GREEN WAS MY VALLEY - 6 de julho de 2013 - denunciar abuso


शैलेन्द्र सिंग मला एक सांगा सत्ता पैसा म्हणजेच सगळे काही आहे का हो ??
ठराविक लोकांचा एक गट एकत्र येतो एका घराण्याच्या लोकांशी एक निष्ठ राहतो
सामान्यांच्या डोळ्यात धूळ फेकून एकत्रित पणे देशाला एकत्र लुटतो. केवळ सत्ता आणि पैसा
आहे म्हणून या अनैतिक लोकांची भलामण करणे कितपत योग्य आहे ?? इतकी वर्षे सत्ता
उपभोगुन या पक्षाने देशाची काय प्रगती साधली ?? केवळ ते एकत्र आहेत एका नेतृत्वाला
प्रमाण मानून हे मुठभर लोक या करोडो देशवासीयांची फसवणूक करून  एखाद्या हुकुमशाह
पेक्षा निर्दयतेने वागून  अनिर्बंध सत्ता उपभोगत आहेत. अशा लोकांच्या ऐक्याचे उदाहरण
सुशिक्षित आणि नैतिकता आणि  अनैतिकता याच्यातील फरक समजणा-या लोकांनी देणे
हे दुर्दैवी नाही तर काय ??



prashantdandekar linking river must b done - 7 de julho de 2013 - denunciar abuso
केवळ सत्ता आणि पैसा आहे म्हणून या लोकांची भलामण करणे कितपत योग्य आहे ?? के
वळ सत्ता आणि जात
आहे म्हणून या  लोकांची भलामण करणे कितपत योग्य आहे एखाद्या हुकुमशाह !!!!!
!संघटना काय करते कधी निवडणुका ब घेतल्या आहेत का ?? कधी ???? करोडो देशवासीयांची फसवणूक
m g - 7 de julho de 2013 - denunciar abuso
निवडणुका घेऊन फसवण्यापेक्षा निवडणुका घेतच नाहीत ते बरे ना...
Shailendrasingh Patil - 7 de julho de 2013 - denunciar abuso




SANDESH, HOW GREEN WAS MY VALLEY:
शैलेन्द्र सिंग मला एक सांगा सत्ता पैसा म्हणजेच सगळे काही आहे का हो ??
ठराविक लोकांचा एक गट एकत्र येतो एका घराण्याच्या लोकांशी एक निष्ठ राहतो
सामान्यांच्या डोळ्यात धूळ फेकून एकत्रित पणे देशाला एकत्र लुटतो.
केवळ सत्ता आणि पैसा
आहे म्हणून या अनैतिक लोकांची भलामण करणे कितपत योग्य आहे ?? इतकी वर्षे सत्ता
उपभोगुन या पक्षाने देशाची काय प्रगती साधली ?? केवळ ते एकत्र आहेत एका नेतृत्वाला
प्रमाण मानून हे मुठभर लोक या करोडो देशवासीयांची फसवणूक करून  एखाद्या हुकुमशाह
पेक्षा निर्दयतेने वागून  अनिर्बंध सत्ता उपभोगत आहेत. अशा लोकांच्या ऐक्याचे उदाहरण
सुशिक्षित आणि नैतिकता आणि  अनैतिकता याच्यातील फरक समजणा-या लोकांनी देणे
हे दुर्दैवी नाही तर काय ??



दुर्दैवीच आहे सगळे. प्रश्न व्यापक आहे. भ्रष्टाचाराने संपुर्ण राजकिय यंत्रणाच पोखरलेली असतांना फ़क्त कॉंग्रेसला सिंगल आऊट करायचे कारण कळत नाही...तसे केल्यावर मात्र सगळं लिखाण प्रचारकी वाटायला लागतं. भ्रष्टाचाराविरोधी खरोखर आहात तर प्रत्येकावरच टिका करायला हव्यात.
भाजपाचा प्रॉब्लेम असा आहे की तिथे एकमेकांच्या पायात पाय अडकवुन पाडायची वृत्ती आहे, त्यामुळेच ते पुन्हा निवडुन येऊ शकले नाही. कॉंग्रेसप्रमाणे जेव्हा ते भ्रष्टाचाराचा फ़ायदा सर्वामंधे वाटुन घ्यायला शिकतील तेव्हा ते एकमेकांचे पाय ओढणार नाहीत, मग तेही भरपुर वर्ष खुर्ची उबवतील. सध्या ते सत्तेबाहेर आहेत ते त्यांच्या नित्तीमत्तेमुळे नाही हे लक्षात घ्यावे.




Mangesh J - 8 de julho de 2013 - denunciar abuso
 फ़क्त कॉंग्रेसला सिंगल आऊट करायचे कारण कळत नाही..
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कारण ती च भ्रष्टाचार ची जननी आहे ....
m g - 8 de julho de 2013 - denunciar abuso
मग भाजपा कोण ? सुपुत्र का सुकन्या ?
Mangesh J - 8 de julho de 2013 - denunciar abuso
मग भाजपा कोण ? सुपुत्र का सुकन्या ?
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निदान जननी आहे हे तरी मान्य ना  ...मग आधी तिथून  सुरुवात करू मग सुपुत्र / सुकन्या त्याचीही दखल घेवु
Shailendrasingh Patil - 8 de julho de 2013 - denunciar abuso
आधी सुरुवात....नंतर सुरुवात असं काही नसतं.  जो सार्वत्रिक प्रश्न आहे त्याचं उत्तरही तितकंच सर्वव्यापी असलं पाहिजे.
Mangesh J - 8 de julho de 2013 - denunciar abuso
आधी सुरुवात....नंतर सुरुवात असं काही नसतं.  जो सार्वत्रिक प्रश्न आहे त्याचं उत्तरही तितकंच सर्वव्यापी असलं पाहिजे.
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किमान कांग्रेस सोडून इतर पक्षाचे सरकार असणार्या राज्याची स्थिति नक्किच चांगली आहे ...केंद्राची सावात्रपानाची वागणूक मिळून सुधा
SANDESH, HOW GREEN WAS MY VALLEY - 8 de julho de 2013 - denunciar abuso
परिवर्तन  पाहिजे , बदल हा हवाच  कमीत कमी आपण मोदींच्या नेतृत्वाखालील देशामध्ये ती अपेक्षा ठेवू शकतो
आपली अपेक्षा ते पूर्ण करतील की नाही माहित नाही  पण एकदा  त्याना   संधी देऊन पहायला काय हरकत आहे ??
काँग्रेस च्या राजवटीत जनता कधीच सुखी नव्हती आणि  भविष्यात ही होणार नाही हे सगळ्यांनाच ठाऊक आहे
कोन्ग्रेसेतर पक्ष निवडून आल्यावर  सामान्य माणसांच्या अपेक्षा पूर्ण करू शकेल किंवा नाही ह्या जर तरच्या गोष्टी आहेत
पण बदल झालाच पाहिजे. इतराना संधी मिळालीच पाहिजे
Mangesh J - 8 de julho de 2013 - denunciar abuso
किमान एक असा विषय सांगा  की ज्यात कांग्रेस ..भाजप पेक्षा  बरी आहे असे म्हणता येइल ..






Kaustubh Gurav - 8 de julho de 2013 - denunciar abuso
Mangesh J:
किमान एक असा विषय सांगा  की ज्यात कांग्रेस ..भाजप पेक्षा  बरी आहे असे म्हणता येइल ..
नेते सांभाळण्यात आणि प्रत्येकाची सोय लावण्यात
m g - 8 de julho de 2013 - denunciar abuso
Mangesh J:
किमान एक असा विषय सांगा  की ज्यात कांग्रेस ..भाजप पेक्षा  बरी आहे असे म्हणता येइल ..
टॉप केडरमधे वाद नसतात....
Mangesh J - 9 de julho de 2013 - denunciar abuso
टॉप केडरमधे वाद नसतात....



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वाद नसतात कारण सगळे गांधी घरान्याची चाकरी करण्यात धन्य मानतात ..तरीही तुमचा मुद्दा मान्य ...
prashantdandekar linking river must b done - 9 de julho de 2013 - denunciar abuso
वाद नसतात कारण सगळे गांधी घरान्याची चाकरी करण्यात धन्य मानतात वाद नसतात कारण सगळे गांधी घरान्याची चाकरी करण्यात  काही अ संघटना मधेतर लोकशाही नावाला  सुधा नही


yashdeep joshi - 20 de julho de 2013 - denunciar abuso


आय बी एन लोकमत वाहिनीवर 'प्रकाश बाळ' नावाचे ज्येष्ठ आणि अनुभवी पत्रकार अनेकदा हिंदुत्ववादी लोकांना वेडावून दाखवत म्हणतात कि "देशात ८५ टक्के हिंदू आहेत ते हिंदुत्ववादी लोकांना सत्तेवर का नाही आणत??"
उत्तर सरळ आहे - देशात ८५ % टक्के हिंदू आहेत , परंतु हिंदुत्वाविषयी जागृत लोक जेमतेम १० ते २०% टक्के आहेत. आपल्या पार्किंगच्या जागेत शेजा-याच्या गाडीची सावली पडते म्हणून मी-मी करत भांडणारे लोक हिंदुत्व अथवा राष्ट्रीयत्व याविषयी बोलायला क्वचितच पुढे येतात .


त्यात मद्रासी लोक संसदेतही तमिळ - तमिळ हे एकच गाणं म्हणतात. द्रविदांसाठी स्वतंत्र द्रविडस्थान मागणा-या पेरियार रामसामीच्या तमिळ  प्रांतात लोकांचे राष्ट्रीयत्व कन्याकुमारीला सुरु होते आणि मद्रासच्या मरिना बीचवर विसर्जित होते .
किंबहुना मराठी लोकांएवढे राष्ट्रीयत्व देशात अन्यत्र क्वचितच सापडेल .  जर मराठी लोकांनी अब्दालीचे हल्ले हा दिल्लीवाल्यांचा वैयक्तिक प्रश्न मानला असता, तर पानिपतची लढाई झाली नसती .
राष्ट्रीयत्वाची जाणीव असलेले लोकच जिथे थोडे असतील तिथे इटालियन आले काय नि मुघल अथवा पाकिस्तानी आले काय, लोकांना थोडीच पर्वा असेल??
या कारणास्तव देशात ८० % हिंदू असूनही सत्ता हिंदुत्ववादी लोकांना मिळत नाही .


Kaustubh Gurav - 24 de julho de 2013 - denunciar abuso
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तो प्रकाश बाळ नाही तर लहान बाळ आहे. कॉंग्रेस हि त्याची माता आहे. तिच्या आणि समाजवादी पुरुषाच्या अनैतिक संबंधातून
 असले पुरोगामी जन्माला येतात

खिलजी ते तुघलक मार्गे फसलेल फसलेल स्वातंत्र्



TAKEN FROM ORKUT

इ.स.१३२० मध्ये दिल्लीचे खिलजी घराणे जाऊन तुघलक घराणे आले. या
सत्तांतराच्या दरम्यान भारतीयांच्या एका गटाने परकिय आक्रमक
राष्ट्राविरुद्ध केलेल्या फसलेल्या क्रांतीची घटना समाविष्ट असून फार थोडया
लोकांना या इतिहासाची माहिती असते. तुगलक घराण्याचा वेडा महंमद बहुतेकांना
माहिती असतो. गिरिश कर्नाड यांचे "तुघलक" हे एक प्रख्यात
नाटकही आहे. "अल्लाउद्दीन खिलजी व महाराणी पद्मिनी " यातून उभ्या
राहिलेल्या संघर्षाची कथा,नाटक,सिनेमा रुपी कलात्मक माहिती येऊन गेली आहे.
मराठीत याच काळावर अल्लाउद्दीन खिलजी च्या दरबारातील अमीर खुस्रो व दक्षिणी गायक कलाकार गोपाळ नायक यांच्यातील गायन जुगलबंदीची मध्यवर्ति कथा कल्पून
"देवगिरी बिलावल " या
नावे एक कादंबरीही २०-२५ वर्षांपूर्वी वाचलेली आठवते.गोपाळ नायक या महान
भारतीय गायकाने अमीर खुस्रो याला यशस्वी टक्कर दिली. अमीर खुस्रो ने गोपाळ
नायकांना हरवण्याचा प्रयत्न केला पण श्रुती, ग्राम,मुर्धना ,जाति  मुर्धना
इ. शास्त्रीय संगीताची वैषिष्ट्ये कशाशी खातात हे त्याला शेवटपर्यंत कळले
नाही.तरिही अमीत्र खुस्रोच्या नंतरच्या इराणी संगीतज्ञाने काही राग खुशाल
अमीर खुस्रोच्या नावावर दडपुन दिले आहेत.




मात्र या
सत्तांतराच्या काळात गुजरात च्या भारवाड या एका लढाऊ जमातीने दिल्लीचे तख्त
परत ताब्यात घेतले होते व तब्बल सहा महिने भारतीय राज्याची पुनर्स्थापना
केली होती या रोमहर्षक इतिहासावर फारसा कोणी प्रकाश टाकलेला नाही. केवळ
स्वा.सावरकरांनी एक स्वतंत्र प्रकरणच या विषयावर लिहिलेले आहे. मात्र "सहा
सोनेरी पाने  " हे इतिहासलेखन किंवा नाट्य-काव्यशास्त्र विनोद याची कलाकृती
नसून इतिहास समिक्षा असल्याने त्यात बरेच तपशील आलेले नाहीत.(सहा सोनेरी
पाने चे इंग्लिश भाषांतर करणारे कै.श्री.श्री.त्र्यं.गोडबोले यांचे एक
अप्रकाशित नाटकही याच विषयावर आहे ते "प्रज्वलंत" मासिकातून प्रसिद्ध
झाल्याचे आठवते )गुजराथीत " करण घेलो" या नावाची याच काळावर एक कादंबरी
आहे. मी कॉलेजमध्ये असताना यावरच एक ऐतिहासिक कादंबरी लिहिण्याचा
अव्यापारेषु व्यापार केला होता.




Kaustubh Gurav - 6 de julho de 2013 - denunciar abuso
परंतु एकंदरीत एका बाटवल्या गेलेल्या अत्याचारीत भारतीयाने
गुलामीतून बाहेर पडून तब्बल सहा महिने परत स्वतंत्र भारतीय सिंहासन स्थापित
केले होते या रोमहर्षक कथानकाची भुरळ अन्य कोणत्या इतिहासकार,नाटककार,कथा-कादंबरीकार यांना पडू नये याचे
आश्चर्य वाटते. अर्थात यात आश्चर्य करण्यासारखे काहीच नाहिही ! कारण
बहुतेक आक्रमक धर्मांध तवारिखकारांनी या भारतीय वीरांची अत्यंत तीव्र
शब्दात निर्भत्सना करुन शिव्या शापांची लाखोली वाहिली असल्याने परकियांच्या ओंजळीने पाणी पिणार्या , अस्मिता गमावलेल्या भारतीय इतिहासकारांनी व कथा-कादंबरीकारांनी त्यांचीच रि ओढली आहे. याला काही अपवाद असले तरी ते स्वत:च्याच निष्कर्षांना भीत भित त्यांनी लेखन केलेले असे आहे.
मात्र
अमीर खुस्रो चे "देवलदी-खिज्रखॉं", "नुह-सिपेहर"," तुगलकनामा " या
तवारिखा, झियाउद्दीन बरनी चे तारीख-ए-फिर्रोजशाही, इब्न बतुता व फेरिश्ता
यांची अरबी-पर्शियन भाषेतील प्रवासवर्णने यातून जे लिहून ठेवले आहे त्यातून
योग्य तो अर्थ काढत मूळ संदर्भ देत हा इतिहास मांडायचा हा एक प्रयत्न !(



Elliot & Dowson : History of India VIII volumes)



Kaustubh Gurav - 6 de julho de 2013 - denunciar abuso
पार्श्वभूमि
खिलजी सुलतान
दिल्लीवर आले त्यावेळेपर्यंत दिल्लीत इस्लामी सत्ता पाय रोवून उभी होती.
दक्षिण भारतात मात्र अद्याप आक्रमणाचा धक्का पोचला नव्हता. सातव्या -आठव्या
शतकात अरबांचे एक मोठे आक्रमण भारतीयांनी यशस्वीपणे परतवले होते. ते एवढे
यशस्वी झाले कि काहि हजारांच्या संख्येने आलेले आक्रमकांपैकी बातमी
सांगण्यापुरतेच काय पाच-दहा जण जिवंअत परतु शकले. याचा जिहादींनी एवढा धसका
घेतला की पुढे १०-१२ पिढयांपर्यंत इस्लामी आक्रमकांनी भारताकडे काणाडोळा
करुन पहाण्याचे धाडस केले नाही. अमेरिकेत दह वर्ष हल्ला झाला नाही तर केवढा
मोठेपणा समजला जात आहे. इथे जागतिक इस्लामीकरण व आक्रमणांच्या सुवर्णकाळात
२००-२५० वर्षे तब्बल ८-१० पिढ्या एकही इस्लामी आक्रमण होऊ शकले नाही हा
हिंदुंचा फार मोठा पराक्रम होता. हा इतिहास सुदधा अधोएखित केला जात
नाही.पुढे सिंध चा काही भाग मुसलमानांनी व्यापला व सक्तीची धर्मांतरे
घडवली. पुन: विजय मिळाल्यावर सिंधु च्या काठावर देवल महर्षींनी त्यांची
प्रख्यात देवलस्मृती रचली व सर्व बाटवल्या गेलेल्या भारतीयांची शुद्धी करुन
टाकली. ( नंतरच्या काळात अगदी शिवकाल व पेशवाईच्या काळातही व आजच्या
काळातही याच देवलस्मृतीच्य आधारावर शुद्धी केली जाते. प्रत्येक स्मृती हि
एक समाजसुधारणा होती.घटनादुरुस्तीच म्हणा ना. स्मृतींना कमी लेखण्याचे कारण
नाही. संपूर्ण देवलस्मृती भाषांतरासह येथे पहा-> http://www.orkut.com/CommMsgs?cmm=26107071&tid=5521474067325686353)



परंतु
पुढे हे धोरण राहिले नाही व ब्राह्मणवर्गाचा शुद्धीविरुद्ध कल होऊ
लागला(दक्षिणा मिळत असली तरी विरुद्ध होता,पावित्याच्या अंध कल्पनांमुळे).
ब्राह्मणेतर समाज शुद्धीच्या बाजूने होता. जसजसा हिंदूंचा सामरिक पराभव
होऊन सत्ता आक्रमकांच्या हाती गेली तसतशी शुद्धी मागे पडली इतकेच नव्हे तर
बाटवलेल्यांवर लक्ष ठेवण्याचीही इस्लामच्या पाईकांना गरज भासेनाशी झाली
कारण बाटलेल्यांना समाज बहिष्कृत करुन स्वत:चेच कट्टर शत्रू निर्माण करत
होता. तरिही कुराणाच्या आज्ञेप्रमाणे काफिरांशी वर्तणुक करणे व्यावहारिक
दृष्ट्या दिल्लीच्या सत्ताधार्यांना  शक्य नव्हते. यावर दिल्ली दरबारात एक
मोठी चर्चा घडली व सर्वानुमते इस्लामचे भारतात काय धोरण असावे यासंबंधी एक
व्यापक धोरण (Policy) ठरवले गेली. मुस्लीम अलिगढ विद्यापीठाने काही
तवारिखांचे हिंदी अनुवादही केले आहेत त्यातील तारीख-ए-फिरोजशाही मधला
संबंधित उतारा जसाच्या तसा,



Kaustubh Gurav - 6 de julho de 2013 - denunciar abuso


"निजामुद्दीन जैनुदी (वझीर) ने उन उलेमाओंसे हो उपस्थित
थे सुलतान के सम्मुख कहा, कि’ इसमें कोई संदेह नही या शक नही की आलिमोंने
जो कुछ कहा वह ठिक है ।हिंदुओंके विषय में यही होना चाहिये कि या तो उनका
वध किया जाए या उन्हे इस्लाम स्वीकार करने पर विवश किया जाए । (किंतु)
हिंदू बहुत बडी संख्या में है। मुसलमान उनके मध्य में दाल में नमक के समान
है। कही ऐसा न हो कि हम उपर्युक्त आदेशोंका प्रारम्भ करे और वे सुसंगठीत हो
कर चारो ओर से विद्रोह तथा उपद्रव आरंभ कर दे। (इसलिए) जब कुछ वर्ष व्यतित
हो जाएंगे और राजधानी के भिन्न भिन्न प्रदेश और कस्बे मुसलमानोंसे भर
जायेंगे तथा बहुत बडी सेना एकत्र हो जाएगी . उस समय्हम आज्ञा दे सकेंगे की
या तो हिंदुओं का कत्ल किया जाए या उन्हे इस्लाम स्वीकार करने पर विवश किया
जाए।


खिलजी कालातही हिंदूंची स्थिती दारुण झाली
होती. हिंदूंकडे द्रव्य साठू नये याची काळजी अल्लाउद्दीन खिलजी चे अधिकारी
घेत. द्रव्य साठले तर हिंदू बंड करतील, त्यांना धर्माच्या आज्ञांप्रमाणे
कठोरपणेच वागवले जावे असेच सवच मुस्लीम सत्ताधार्यांचे मत असे.
अल्लाउद्दीनाच्या काळातील भारतीय प्रजेविषयी रियासतकार सरदेसाई लिहितात,


"हिंदूंना
हत्यारे,घोडे मिळू नयेत किंवा त्यांनी ते बाळगू नयेत,उंची पोषाख करु
नये,छानछोकीने राहू नये असा त्याने बंदोबस्त केला. हिंदुंना जमिनीचे अर्धे
उत्पन्न कर म्हणून भरावे लागे.गाईम्हशींचासुद्धा कर द्यावा लागे.कोणाही
हिंडूच्या घरात सोने,चांदी वा सुपारीसुधा उरली नाही.हिंदू अंमलदारांच्या
बायकांना मुसलमनांच्या घरी चाकरी करावी लागे.हिंदूंना सरकारी नोकर्या
मिळेनाशा झाल्या. मात्र एखाद्याला दरबारात नोकरी मिळालीच तर त्याला लोक
आपली मुलगी लग्नासाठी देत नसत कारण अशा मुलींणा मुसलमानांच्या जनानखान्यात
नोकरीस रहावे लागे" मुसलमानी रियासत पृ. १४१



Kaustubh Gurav - 6 de julho de 2013 - denunciar abuso


तरिही सर्व थरातले हिंदू धर्मनिष्ठच राहिले. प्रसंगी अत्याचार
सोसून व संधी मिळताच उलटुन ते अन्यायाचा प्रतिकार करत.फिरोजशहा तुगलकच्या
काळातली खुद्द दिल्लीतीलच एका धर्मनिष्ठ ब्राह्मणाची एक गोष्ट झियाउद्दीन
बरनी ने नमूद केली आहे ती अशी,
Third Mukaddama.—Burning of a Brahman before the Royal  Palace.
A report was brought to the Sultán that there was in Dehlí an old Brahman (zunár dár), who persisted in publicly performing the worship of idols in his house; and that the people of the city, both Musulmáns and Hindus, used to resort to his house to worship the idol. This Brahman had constructed a wooden tablet (muhrak),
which was covered within and without with paintings of demons and other
objects. On days appointed, the infidels went to his house and
worshiped the idol, without the fact becoming known to the public
officers. The Sultán was informed that this Brahman had perverted Muhammadan women, and had led them to become infidels.
An order was accordingly given that the Brahman, with his tablet,
should be brought into the presence of the Sultán at Fírozábád. The
judges and doctors and elders and lawyers were summoned, and the case of
the Brahman was submitted for their opinion. Their reply was that the
provisions of the Law were clear: the Brahman must either become a
Musulmán or be burned. The true faith was declared to the Brahman, and
the right course pointed out, but he refused to accept it. Orders were
given for raising a pile of faggots before the door of the darbár. The Brahman was tied hand and foot and cast into it; the tablet was thrown on the top and the pile was lighted.
The writer of this book was present at the darbár and witnessed the execution. The
tablet of the Brahman was lighted in two places, at his head and at his
feet; the wood was dry, and the fire first reached his feet, and drew
from him a cry, but the flames quickly enveloped his head and consumed
him. Behold the Sultán's strict adherence to law and rectitude, how he
would not deviate in the least from its decrees.








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आक्रमक ब्राह्मण वर्गाला काही वेळा जिझिया करात सवलत देत असत,
काही वेळा नाकारत असत. फिरिजशह तघलक ने ब्राह्मण वर्गाला सुद्धा जिझिया
देणे भाग पाडले. त्यांच्या उपोषण ,सत्याग्र्ह याकडे दुर्लक्ष केले. शेवटी
थोडीशी सवलत देऊन जिझिया लवला गेला.
The Jizya, or
poll tax, had never been levied from Brahmans; they had been held
excused, in former reigns. But the Sultán convened a meeting of the
learned men and elders, and suggested to them that an error had been
committed in holding Brahmans exempt from the tax, and that the revenue
officers had been remiss in their duty. The Brahmans were the very keys of the chamber of idolatry, and the infidels were dependent on them. They ought therefore to be taxed first.
तवारिखांचा
आदर्श महमूद गझनी असे. तारिखे फिरोजशाहीत जर सुलतान महमुद परत
हिंदुस्तानवर स्वारी करता तर सर्वप्रथम त्याने इस्लामला रोखणार्या
ब्राह्मणांची प्रथम कत्तल केली असती.भारतात हिंदुंना बाटवण्यात मुख्य अडसर
ब्राह्मणांचा आहे. फखरे मुदब्बीर नावाच्या तवारिखकाराने हिंदूंचा विनाश कसा
करावा हे सांगणाराआदाबुल हर्ब वश्शुजाअत नावाचा ग्रंथ लिहिला.




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हसन-खुश्रुखानाची पार्श्वभूमि
अल्लाउद्दीन
च्या वेगवेगळ्या स्वार्यांमधे पराभूत भारतीयांना गुलाम म्हणून आणले जाई.
या गुलामांकडून सक्तमजुरी करुन घेणे ,त्यांना बाटवणे या सारखी कामे करुन
घेतली जात. स्त्रियांना बटकी ,दासी म्हणून जननखान्यात कामे करावी लागत.
इ.स.१२९९
च्या गुजराथवरील स्वारीत अल्लाउद्दीन खिलजीच्या फौजेने केलेया गुजराथवरील
हल्ल्यात गुजराथचा राजा कर्णदेव पराभूत झाला. खिलजींना अपार लूट मिळाली.
त्याचबरोबर राजा कर्ण ची पत्नी कमलदेवी व कन्या देवलदेवी यांनाही पकड्ण्यात
आले. त्यांच्याबरोबर सहस्त्रावधी हिंदू स्त्रिया व बालके पकडून गुलाम
म्हणून दिल्लीला पाठ्वण्यात आली.शेकडो मंदिरे फोडली गेली किंवा मशिदीत
रुपांतरीत केली गेली. खलजी राजवटीवर विशेष काम केलेले इतिहासतज्ञ
के.एस्.लाल आपल्या History of the Khalajij या ग्रंथात लिहितात, "The
buildings of Allauddin outside the Capita lmentioned may be made of the
mosque at Mathura and the tomb of Shaikh Farid which was probably a
converted Hindu or Jain Temple. There is another Masjid built about the
same time at Broach.It is also a convert Jain temple." page 332
याच
स्वारीत वारंवर भ्रष्ट केले गेलेले सोरटी सोमनाथाचे मंदिर पुन: फोडले
गेले, तेथील मुर्ती दिल्लीला आणवून तख्ताची पायरी म्हणून वापरली जाऊ
लागल्याची माहिती तारिख-ए-फिरोजशाही देते.







याच स्वारीत
भारवाड या गुजरातमधील लढाऊ जमातीतले काही कुमार पकडून नेण्यात आले. त्यातील
सर्वात जो देखणा होता त्याचे नाव "हसन" व त्याच्या भावाचे नाव हिसामुद्दीन
असे ठेवले गेले.दरबारातले काही अधिकारी त्यांच्यावर समलिंगासक्त ख्झाले.
पण हा हसन मनातून संतप्त होता. कमलदेवी हिला अल्लाउद्दीनाने जनानखान्यात
घातले तर तिची मुलगी देवलदेवी हि अल्लाउद्दीनाचा मोठा मुलगा खिज्रखानाकडे
पाठवण्यात आली. हसन वर अल्लाउद्दीनचा धाकटा मुलगा मुबारक खान याची अतोनात
मर्जी झाली. खुश्रुखानाची जात काही वेळा परवार काही वेळा भारवाड अशी
तवारीकातून दिली गेली आहे. या जातीविषयी माहीती अशी:- "काही मातापंथीय
काही रामानंदपंथी- झाला बापजी या पुण्यवानास भजतात-नवस करतात-मृतांस
जाळतात- क्रियाकर्म ब्राह्मणांकडून केली जाते-,वस्ती- गुजराथ व काही
महाराष्ट्र- कृष्णाचा धर्मपिता नंद ज्या जातीचा होता त्याच मेहेर जातीचे
हे लोक अशी एक कथा- काहिंचया मते वैश्य पुरुष व शूद्र स्त्री यांपासून हि
जात निर्माण झाली ( शुद्र म्हणजे सवर्णच सवर्ण शब्दाची फोड ज्याला वर्ण
आहे तो शूद्र हे सुद्धा स-वर्णच)-मुळचे गोकुळ ,वृंदावनातील असावेत. पुरुष
कमरेभोवती,डोक्याला व खांद्यावर अशा तीन घोंगडया
घेतात-गुरांचे,शेळ्यामेंढ्यांचे कळप पाळणे,दूध विकणे हे व्यवसाय- लग्नात
ब्राह्मण पौरोहित्य करतो तो उपलब्ध नसल्यास मुलीकडील एखादी व्यक्ती करते-
सोडचिठठीची पद्धत-विधवेस धाकट्या दिराशी लग्न करता येते. (संदर्भ भारतीय
संस्कृती कोश)








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परिया,परवार किंवा बरवड अशी काही असली तरी एक गोष्ट नक्की की हि
एक लढाऊ जात असून त्या काळात सैन्यात नोकरीला या लोकांना बर्याच राजांकडून
ठेवले जात असे.
विटंबित झालेला "हसन" संधीची वाट पहात होता. आपल्या
पराक्रमाने तो वरच्या पदाला पोचत होता. सन १३१६ बाटलेल्या मलिक काफूर याने
अल्लाउद्दीन ला  ठार मारले व स्वत:च सुलतान झाला. अल्लाउद्दीनाच्या सर्व
मुलांना त्याने कैदेत घातले पण हसन खुष्रुखानाच्या अंतस्थ सहायामुळे लवकरच
मुबारकखानाला सुटका होऊन मलिक काफुरला ठार करता आले.मुबारकखान लगेचच
तख्तावर आरुढ झाला व सुलतान कुतुब-उद-दीन नावाची द्वाही फिरवता झाला. या
हसनला  त्याने खुश्रुखान हि पदवी देऊन सर्व राज्यकारभार त्याच्या तंत्राने
चालवू लागला.खुश्रुखानाने आपल्या गुप्त बेतांचा कोणताही सुगावा लागु दिला
नाही. पण त्याच्या मनात दिल्लीला हिंदुपदपादशाही स्थापन करण्याचे विचार
होते हे त्याच्या पुढच्या कृत्यांवरुन दिसून आले.मलिक काफुरप्रमाणेच
खुश्रुखानानेही दक्षिणेत विजय मिळवले.पण त्याने हिंदू राजांना जिंकले तरी
सुलतान दक्षिणेकडची स्वारी त्याच्या आधीन करुन दिल्लीत परतल्यावर खुश्रुने
हिंदुंवर अत्याचार केल्याचे दिसत नाही.


उलट
मलबार ला ताकीखान
नावाच्या एका धनाढ्य मुसलमान सावकराशी त्याचे वैर उत्पन्न होऊन त्याची सर्व
संपत्ती त्याने हरण केली. दक्षिणेतील हिंदु राजांबरोबर त्याने कटकारस्थाने
सुरु केल्याची कागाळि सुलतान कुतुबुद्दीनाकडे होऊ लागल्याने अचानक त्याला
दिल्लीला परत येण्याचा हुकून दिला गेला. काही तवारिखकार त्याला कैद करुन
आनले गेले असेही लिहितात. यावेळी खुश्रुखानाच्या मनात कदाचित दिल्लीला परत न
जाताच तेथील हिंदु राजांच्या मदतीने स्वतंत्र राज्य स्थापन करायचा विचार
असावा.
(Mullik Khoosrow, who had gone to Malabar, stayed
there about one year. He plundered the country of one hundred and
twenty elephants, a perfect diamond, weighing one hundred and
sixty-eight ruttys, with other jewels, and gold to a great amount. His
ambition was increased by his wealth; and he proposed to establish
himself in the Deccan in an independent sovereignty.)







त्याआधी
त्याच्या भावाला, हिसामुद्दीन याला,गुजराथचा सुभेदार म्हणून पाठवले असता
तेथील हिंदू सरदारांशी कट केल्याच्या सुगावा लागल्याने पकडून दिल्लीला
आणवले गेले असता शिक्षा म्हणून त्याला
४-२ थोबाडीत मारुन सुलतानाने सोडून
दिल्याची तक्रार तवारिखातून दिसते.






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याचप्रमाणे खुश्रुखानाचा दक्षिणेतला कट फसला असावा व त्वरित
दिल्लीला परतावे लागले. दिल्लीला परतल्यावर खुश्रुखानाने आपण जिंकलेली
संपत्तीची रास सुलतानापुढे ओतली. सुलतानाने त्याचा बहुमान करुन
त्याच्याविरुद्ध कागाळ्या केलेया सरदारांना कडक शिक्षा केल्या.
खुश्रुखानाने यापूर्वीच आपल्या बर्याचशा हिंदू नातेवाईकांना दिल्लीला
बोलावून घेतले होते. त्यांना काही अधिकाराच्या व सैन्यातील जागाही
देवविल्या होत्या. त्याच्या मामाचे नाव "रणडोल" असे अमीर खुस्रो लिहितो.
इतर सहकार्यांची नावे कर्कमाजनाग, ब्रह्म,जहारिया अशी काही सामान्य तर
काही चमत्कारीक वाटणारी दिली आहेत.झियाउद्दीनने "तोबा" नावाच्या एकाच
साथिदाराचे नाव दिले आहे. हा दरबारात विदुषकी चाळे करीत असावा असे दिसते.





परंतु
तवारिखांनी दिलेलि माहिती व शिव्याशाप नि:संशय एकतर्फी आहेत. अमीर खुस्रो
हा "निजामुउद्दीन औलिया" याचा चाहता होता. त्याची आई हिंदू असून त्याचे
बालपण आजोळी गेल्याने त्याच्यावर नि:संशय कडवे संस्कार जाले नव्हते.
त्याच्या तुगलकनामात त्याने तुलनेने खुश्रुखानाविषयी झियाउद्दीन बरनी
पेक्षा सौम्य भूमिका घेतली आहे.हे दोघेही या सर्व इतिहासाचे प्रत्यक्षदर्शी
दरबारी असल्याने त्यांनी लिहिलेल्या माहिती ला नक्कीच मोल आहे.
निजामुद्दीन औलिया हा नंतर सत्तेवर आलेल्या तुघलकांच्या विरोधी होता.
"दिल्ली तो बहोत दूर है " हा इतिहासप्रसिद्ध वाक्प्रचार म्हणजे या
अवलियाने घियासुद्दीन तुघलकाचा आदेशाला दिलेले उत्तर आहे. असो.एकंदरीत
खुश्रुखानाने सुलतानाची त्याच्यावरील कामासक्ती, स्वत:चा पराक्रम व अभिनय व
आपल्या भारवाडांचे सैन्य या जोरावर आपला पक्ष बळकट करत आणला होता.






रियासतकार
सरदेसाई खुश्रुखानाविषयी लिहितात - "खुश्रुखानाचे आचरण चमत्कारिक आहे.
त्याच्या हातून अनेक असंबद्ध कृत्ये घडली. प्रथमत: त्याने सरकारी खजिना
खुला करुन फौजेस मुबलक द्रव्य देऊन तिला वश केले. त्याने आपल्या नावाचा
खुत्बा वाचवला,स्वत:ची नाणी पाडली व पुढे स्वत:ला हिंदु समजून तो
मुसलमानांविरुद्ध वर्तन करु लागला.त्याने देवलदेवीशि लग्न केले ( गुजरात
ची अल्लाउद्दीन ने पळवलेली राजकन्या ,राजा करण घेला याची मुलगी). त्याच्या
हिंदु अनुयायांनी दिल्लीतील सर्व मशिदीत मुर्ती स्थापन केल्या.
.....चितोड व रणथंबोरच्या हिंदु राजांन्नी प्रयत्न केला असता तर त्यांना
स्वतंत्र होण्याची संधी होती. पण त्यंनी प्रयत्न केला नाही. ...









हिंदुपदपादशाही स्थापण्याची खुश्रुखानाची फार इच्छा होती. त्याच्याविषयी
बखरकारांनी दिलेली माहिती नि:संशय एकतर्फी आहे. ह्यावेळी हिंदुंनी
लिहिलेली माहिती सापडली तर त्यांच्या या बंडाचा चांगला उलगडा होऊ शकेल.






"
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यानंतर प्रत्यक्ष दिल्लीच ताब्यात घेण्याची योजना खुश्रुखानाने
आखली.इब्न बतुता या प्रवाशाने दिलेल्या माहितीनुसार त्या काळी स्वत:हून
मुसलमान होऊ इच्छीणार्या हिंदूंना स्वत: सुलतान भेटून सोन्याची साखळई
,थोडेफार द्रव्यादी सन्मान देत असे.
One day Khusrú Khán
told the Sultán that several Hindus desired to become Musulmáns. It is
one of the customs in this country that, when a person wishes to become
a convert to Islám, he is brought before the king, who gives him a
fine robe and a necklace and bracelets of gold, proportionate in value
to his rank. The Sultán told Khusrú to bring the Hindus before him, but
the amír replied that they were ashamed to come by day on account of
their relations and co-religionists. So the Sultán told him to bring
them at night.
वरील मजकुरात फार अर्थ भरलेला आहे. एकतर
शांततेच्या काळात पैसा वापरुन आमिष दाखवून धर्मांतरे होत. ज्यांना या
फायद्यांसाठी बाटायचे होते त्यांना त्याची शरम वाटे. म्हणून त्यांना बळाने
रोखु शकणारा कोणीही नसला तरीही ते हे कृत्य करण्यास समाजापासून लपुन छपुन
जात. सर्व जाती व वर्ग सहसा धर्म बदलण्यास अनुकूल नव्हते. बहुतेक
स्वार्यंमधे हजारो लोक बाटवले जात. पण समाज धुरीणांच्या महामुर्ख पणा मुळे
या बाटलेल्या लोकांची शुद्धी होण्याची शक्यताच उरली नव्हती व आक्रमक
राष्ट्राला एकदा बाटवलेल्यांवर नजर ठेवण्याची गरज उरत नसे. युरोप व अन्य
जगात मात्र अरबी राष्ट्रवाद्यांना नव्यानेच सामिल केलेल्या राष्ट्रिकांना
संभाळणे हि डोकेदुखी असे कारण संधि मिळताच ते लोक इस्लाम सोडत.









रात्री
मुसलमान होऊ अशा बहाण्याने आलेले सर्व हिंदूंनी अचानक दंगल माजवली.
सुलताना संशय येऊन तो पळू लागला. तेवढ्यात खुश्रुखानाचा सहकारी जहारीया
तिथे पोचला व सुलतानाचे डोके त्याने छाटुन टाकले.




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उजाडता उजाडता सर्वत्र खुश्रुखानाच्या नावे द्वाही फिरवली जाऊन
सर्व दरबारींना भारवाडांनी पकडून आणले व सर्वांची नव्या सुलतानाला मान्यता
मिळाली. सुलतान नासिरुद्दीन खुश्रुशहा असे नाव घेऊन तख्तावर बसला.
येथपर्यंत जे झाले ते सत्तांतरच्या इतिहासात सर्वसामान्य होते. अल्लाउद्दीन
खिलजी स्वत:चा चुलता व सासरा जल्लालुद्दीन खिलजी चा खून करुन सत्तेवर आला.
मलिक काफुरने खिस्रखानाचे डोळे फॊडले. तर  मुबारक खान उरल्यासुरल्या अंध
केलेल्या भावांचा खून करुन त्यांच्या बायका आपल्या जनानखान्यात घालून
तख्तानशीन झाले होते. पण सर्वजण खलिफाचे प्रतिनिधी, इस्लामचे नेक पाईक ,
भारत दारुल-इस्लाम करण्याला कटीबद्ध होऊन आले होते. परंतु नव्या सुलतानाने व
नविनच खेळ आरंभला. दिल्लीतील मशिदीतून मुर्तींची स्थापना केली जाऊन
पूजाअर्चा होऊ लागली, कुराणाचा सन्मान राखला गेला नाही, मुसलमान स्त्रिया
हिंदूंच्या आती सोपवल्या गेल्या इ. आरडाओरड व आरोप त्यांनी खुश्रुखानावर
करत त्याच्यावर शिव्यांची लाखोली वहात, त्याची खालची जात काढत तवारीखांनी
केली आहे. खुश्रुखानाने गोहत्याबंदी केली व जे जे हिंदूंना पवित्र त्या
सर्वाचे पावित्र्य राखण्याचे हुकूम काढले गेले.







झियाउद्दीन बरनी लिहितो,"हिंदुओने
कुरान का कुर्सी के स्थान पर प्रयोग करना प्रारम्भ कर दिया ।मस्जिद के
ताकी में मुर्तिया रख दि गयी और वहा मूर्तीपूजा होने लगी। उस xxx का
राज्याभिशेक होने से तथा हिंदुओंके अधिकारसंपन्न होने से काफिरी नियमोंको
उन्नती प्राप्त होने लगी।"
इसामी हा आपल्या फुतुहत सलाटीन मध्ये लिहितो," खुसरोखॉं के शासन में मुसलमान अत्यंत निर्बल हो गये। मुसलमानोंको बडी हानी पहुंची।"
इब्न बतुता लिहितो,"

जब खुसरो खॉं सुलतान हुआ तो उसने हिंदुओंको विशेषरुप से सम्मानित करना
प्रारम्भ कर दिया। वह खुल्लमखुला इस्लाम के विरुद्ध कार्य करने लगा । उसने
काफीर हिंदुओंकी प्रथा के अनुसार गौहत्या रोक दी । हिंदू गौ का बडा सम्मन
करते है । खुसरो खॉं  चाहता था की मुसलमान भी ऐसाही करे।"




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"This event occurred on the 25th of Rubbee-ool-Awul, in the
year 721. In the morning Khoosrow, surrounded by his creatures, ascended
the throne, and assumed the title of Nasir-ood-Deen. He then ordered
all the slaves and servants of Moobarik, whom he thought had the least
spark of honesty, to be put to death, and their wives and children to be
sold as slaves. His brother was dignified with the title of Khan Kha-nan, or chief of the nobles, and married to one of the daughters of the late Alla-ood-Deen.
Khoos-row took Dewul Devy, the widow of his murdered master and
sovereign to himself, and disposed of the other ladies of the seraglio
among his beggarly relations."
-The History of the Rise of Mohammedan Power in India
तथापि
मुसलमानांनाही एकदम दुखावणे बरे नाही म्हणून इमामांकडून त्याने आपल्या
नावाचा खुत्बाह पढवून घेतला. खुत्बा म्हणजे सुलतानाच्या सन्मानाची
प्रार्थना व घोषणा असते. त्याचबरोबर त्याने आपल्या नावाचे नाणेही पाडून
घेतले. सुदैवाने ते आजही उपलब्ध असून ते पुढील प्रमाणे आहे,


Kaustubh Gurav - 6 de julho de 2013 - denunciar abuso
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Nasir al-Din Khusru (1320), Billon 2-gani
Weight: 3.53 gm., Diameter: 17 mm., Die axis: 11 o'clock
Legend: al-sultan al-azam nasir al-dunya wa'l din, dated 720 (= 1320 CE) /
Legend, within circle: shah khusru, around: al-sultan wali amir al-muminin
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यानंतर खुश्रुखानाने देवलदेवीशी विवाह केला. तिचे या कटात मोठा
सहभाग असल्याचे सावरकरांनी नमूद केले असले व बरेच महत्व दिले असले तरी तसा
कोणताही ऐतिहासिक पुरावा फारसा मिळत नाही.मात्र एकंदरीत गुजरातच्या या
राजकन्येच्या आयुष्याची परवड झाली यात संशय नाही.



खुश्रूखानाची
कारकिर्द खुश्रूखानाची सुलतान म्हणून कारकिर्द २० एप्रिल १३२० ते ६
सप्टेंबर १३२० अशी साधारण साडेचार महिन्यांची आहे. (संदर्भ Advance study
in the History of India by J.L.Mehta page nos.185-86)
पहिल्या
तीन महिन्यात त्याच्याविरुद्ध कोणाही मुसलमान सरदाराची ब्र ही काढण्याची
छाती झाली नाही. मात्र यावेळी देशाच्या अन्य भागातील हिंदू राजांनी कोणताही
उठाव केला नाही. बहुतेक स्वस्थ रहा व पहा असे धोरण त्यांनी अवलंबले. खरे
तर यावेळेपर्यंत खिलजी राजवटींविरुद्ध अन्य राजे उठाव करत असत. ते शांत
बसले होते असे अजिबात नसून हिंदूंचा सततचा अंतर्गत उपद्रव व सीमेवर
मोगलांचे हल्ले याने ते त्रासलेले असत. हा उपद्रव एवढा होता की वेड्या
महंमदाने आपली राजधानी देवगिरीला हलवण्याचा प्रयत्न केला. त्यातून हिंदू
बंडखोरांवर लक्ष ठेवणे सोपे जाईल असा त्याचा कयास होता. पण या काळात
कोणताही उठाव झाला नाही व परकिय राष्ट्राविरुद्ध उठाव करण्याची हि एक
चांगली संधी भारतीयांनी गमावली असेच म्हणावे लागते.







गियासुद्दीन
तुघलक हा पंजाबचा सुभेदार असून कुशल असा सेनापती होता. मोगलांशी त्याला
सतत युद्ध करावे लागल्याने लढाई करण्यात अनुभवी होता. त्याने
खुश्रूखानाविरुद्ध प्रथम इस्लाम खतरेमेची घोषणा केली. प्रथम त्याने काही
सरदरांना गुप्तपणे पत्रे पाठवली. पण खुश्रुखानाच्या दहशतीमुळे फारसे कोणी
खुश्रुखानाच्या विरुद्ध जाण्यास धजेना. याचवेळी फक्रुद्दीन जेना हा
तुघलकाचा मुलगा जो पुढे वेडा महंमद म्हणून इतिहास प्रसिद्ध झाला तो एका
रात्री खुश्रूखानाच्या कैदेतून निसटण्यात यशस्वी झाला. खुश्रुखानाने संकट
ओळखून ताबडतोब एक तुकडी आपल्या भावाच्या नेतृत्वाखाली तुघलकावर पाठवून
दिली. यानंतर अजून काही मुसलमान सरदार तुघलकाला जाऊन मिळू लागले. तघलकाचे व
खुश्रुखानाच्या सैन्याची शेवटी "इंद्रप्रस्थ" या प्राचीन नगरात गाठ पडली.



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तुघलकनामामध्ये अमीर खुस्रो ने या लढाईचे वर्णन दिले आहे. तो
लिहितो," खुसरो खॉं के भाई हिसामुद्दीन ,राय रायॉं रंधोल  हातिम खॉं, और
बहुत से नये अमीर जो गुलामी से अमीरी की श्रेणी तक पहुंचे थे अपनी अपनी
सेनायें लिए साअथ थे। सेनाके आगे हाथियों की पंक्तिया थी और उन्ही के चारो ओर दस हजार ब्रादि ( अर्थात भारवाड) जाति के सवारे थे। उनके नाम अहर देव,अमर देव,नर्सिया,पर्सिया, परमार आदि थे।"
युद्ध
सुरु झाले. सुरुवातीला खुश्रुखानाला यश मिळत होते. पुन: एकदा बाजी पलटली
तेव्हा सर्व हिंदू सैंन्य संतापले व ग्यासुद्दीनाच्या सैंन्यावर तुटुन
पडले.
अमीर खुस्रो लिहितो,"...इतने में हिंदुओंकी
सेनाने आक्रमण कर दिया। मैल गाजी (तुगलक) तुरंत इस भय को भॉंप गया ।
हिंदुओंके "नायाsssयण" के नारे के साथ उसने "अल्ला हू अकबर का नारा लगाया ।
किन्तु यह आक्रमण इतनी तीव्र गतीसे किया गया था कि गाजी के सॅंभलते सॅंभलते हिंदुओंने उसकी सेना के बहुत झण्डे काट डाले ।"



याप्रमाणे
हिंदूंचा विजय झाला व ग्यासुद्दीन काही अंतरापर्यंत पळून गेला. पण निकराची
वेळ ओळखून त्याने फिरुन पुन: सैंन्य गोळा केले व विजयाने गाफील झालेल्या
खुश्रुखानाच्या सेनेवर परत आक्रमण केले. तुगलकाचा हा हल्ला अचानक व वेगाने
झाल्याने त्याच्या सैंन्यापासून वेगळा पडला. हिंदुंधे अंदाधुंदी माजली.
काही जण दिल्लीकडे पळाले तर काही जण गुजरात च्या दिशेने. त्यांचा पाठलाग
करुन त्यांना मारण्यात आले. काही पळाले. खुश्रुखानालाही पकडून ताबडतोब ठार
मारले गेले. सक्तीने बाटवलेल्या व अन्य हिंदूचा एक उद्रेक फसला.
खुश्रुखान
अपयशी ठराला.







पण त्याचे महत्व कमी होत नाही. छळात पिचून जाऊनही त्याने
आपल्या हिंदुत्वाची निष्ठा मनात जागरुक ठेवली होती व वेळ येताच ४-५
महिन्यांसाठी का होईना दिल्लीचा हिंदू सुलतान बनला. बाटलेल्यांनी आपल्या
हिंदू नातेवाईक व मित्रांच्या मदतीने पलटुन वार केल्याची हि पहिलीच घटना
होती. सन ६ सप्टेंबर १३२० ला खुश्रुखान मारला गेला. पण बाटलेल्यांनी परत
हिंद् होऊन हिंदुराज्य स्थापन करण्यासंबंधीच्या त्याच्या स्मृती
इतिहासाच्या गती-प्रतिगतीच्या लाटांवर तरंगत राहिली. सन १३२४ मध्ये
काश्मिरच्या शेवटच्या हिंदू राणी कोटाने आपला नवरा मुस्लीम झाल्याने शस्त्र
उपसले तर दक्षिणेत पुढे केवळ सोळाच वर्षांनी म्हणजे सन १३३६
मध्ये हरिहर व बुक्क या दोन बाटवल्या गेलेया तरुणांनी पुन:श्च हिंदूत्व
स्वीकारून विजयानगरचे प्रबळ व वैभवशाली हिंदू साम्राज्य उभारले.
समाप्त









Kaustubh Gurav - 6 de julho de 2013 - denunciar abuso
सौजन्य:चंद्रशेखर साने
Suyash ................. - 6 de julho de 2013 - denunciar abuso
farach sundar... इथे छापल्याबद्दल धन्यवाद
Kaustubh Gurav - 7 de julho de 2013 - denunciar abuso
पुन्हा झपाटलेला:
farach sundar... इथे छापल्याबद्दल धन्यवाद

Sunday 20 November 2016

पाकिस्तानचे तीन तुकडे हाच पर्याय.



FADANVISHI  BLOG"s ARTICLE.............   BY MR. AMBARISH FADANVIS...ONLY SHARED BY ME....

इंदिराजींनी असामान्य धैर्य दाखवत पाकिस्तानचे दोन तुकडे केले. तरीही पाकिस्तनाची युद्धाची खुमखुमी कमी झाली नाही. आजवर अनेकदा पाकिस्तानने शस्त्रसंधी मोडल्या आहेत. कारगिलच्यावेळीस भारताला अधिक आक्रमक होण्याची संधी होती पण ती गमावली गेली. अलीकडेच जानेवारीत दोन सैनिकांची हत्या करून त्यांचा शिरच्छेद करण्याची अमानुष, रानटी आणि सर्व आंतरराष्ट्रीय संकेत झुगारणारी घटना घडली. देशभरातून निषेधांचं वादळ उठलं… विरूनही गेलं. आता पाच सैनिकांची हत्या भारतीय हद्दीत घुसून करण्यात आली. पुन्हा निषेधांचं आणि पाकिस्तानला धडा शिकवण्याच्या मागण्यांचं वादळ उठलं आहे. या निमित्ताने महत्त्वाचा परंतु दुर्लक्षित राहिलेला प्रश्न म्हणजे भारतीय लष्कर खरोखरच युद्धसज्ज आहे काय?

सीमा ओलांडून पाकिस्तानी सैनिक आत घुसतात आणि ‘बेसावध’ जवानांना ठार मारतात ही घटना भारतीय लष्कराच्या दृष्टीने नक्कीच भूषणास्पद नाही. पाकिस्तानशी भारताने युद्ध घोषित करावं ही मागणी जोर धरत असली तरी तसं होण्याची शक्यता नाही. जागतिकीकरणामुळे बदललेलं आंतरराष्ट्रीय राजकारण आणि अर्थसत्तांचं राजकीय सत्तांवर वाढत चाललेलं नियंत्रण यामुळे निर्णयशक्तिचं स्वातंत्र्य बाधित झालेलं आहे. पाकिस्तानला अमेरिकेचा आणि चीनचा असलेला छुपा तर कधी उघड पाठिंबाही इथे विचारात घ्यावा लागतो आणि त्याहून महत्त्वाचं म्हणजे जागतिकीकरणाची ‘मधुर’ फळं खायला सोकावलेला नवमध्यमवर्ग युद्धखोरीची भाषा कितीही करत असला तरी युद्धामुळे निर्माण होणार्या संभाव्य आर्थिक पडझडीला सामोरं जाण्याची त्यांची मानसिकता नाही.

सोशल मीडियातून राष्ट्रप्रेमाचं भरतं आल्याचं दाखवण्यात ते धन्यता मानतात. याचा अर्थ असा नव्हे की पाकिस्तानला धडा शिकवू नये. तो शिकवलाच पाहिजे. युद्धाचा उपाय टाळून तो कसा शिकवता येईल यावर आपल्याला गंभीरपणे विचार करावा लागणार आहे. पाकिस्तानचे पूर्वी भारतानेच दोन तुकडे करून दाखवले आहेत. आता त्याचेच तीन तुकडे कसे करता येतील यासाठी कुट नीतिचाच आश्रय घ्यावा लागणार आहे आणि तशी संधी पाकिस्ताननेच निर्माण करून ठेवली आहे.

बलुचिस्तानः

पाकिस्तानचे जे प्रमुख राजकीय विभाग पडतात त्यात बलुचिस्तान हा मोठा भाग आहे. येथील मुस्लीम हे बलुची वंशाचे असून त्यांचं सांस्कृतिक-सामाजिक जीवन हे प्राचीन काळापासून स्वतंत्र राहिलेलं आहे. १९४७ साली पाकिस्तान स्वतंत्र झाला तेव्हापासूनच बलुच्यांनी आपलं स्वतंत्र राष्ट्र असावं यासाठी चळवळ सुरू केली होती. पाकिस्तानमध्ये सामील व्हायला बलुच्यांचा पहिल्यापासूनच विरोध होता. परंतु कलात संस्थानाने १९५५मध्ये पाकिस्तानमध्ये सामील होण्याचा निर्णय घेतल्याने १९६० पासूनच स्वतंत्र बलुचिस्तानची मागणी जोर पकडू लागली. त्यामुळे संपूर्ण बलुचिस्तानात अराजक माजलं. शेवटी पाकिस्तानला १९७३ साली इराणच्या मदतीने लष्करी कारवाई करून विद्रोह दडपावा लागला होता. यात हजारो विभाजनवादी क्रांतिकारी ठार झाले. हे स्वतंत्रता आंदोलन चिरडण्यात पाकिस्तानला तात्पुरतं यश मिळालं असलं तरी १९९० नंतर ही चळवळ पुन्हा उभी राहिली. बलुचिस्तान लिबरेशन आर्मी आणि लष्कर-ए-बलुचिस्तान या संघटनांनी पाकिस्तानमध्ये आजवर अनेक हिंसक कारवाया घडवून आणल्या आहेत. अर्थातच पाकिस्तानने त्यांना दहशतवादी संघटना म्हणून घोषित केलं आहे. बलुचिस्तान हा नैसर्गिक साधनसामग्रीने श्रीमंत प्रदेश असला तरी दारिद्र्याचं प्रमाण याच भागात खूप मोठं आहे. पाकिस्तानने या भागाचा विकास घडवून आणण्यात विशेष पुढाकार घेतल्याचं चित्र नाही. त्यामुळे आणि बलुच्यांच्या रक्तातच असलेल्या स्वतंत्रपणाच्या जाणिवांमुळे स्वतंत्र बलुचिस्तानची चळवळ थांबणं शक्य नाही. दुसरं महत्त्वाचं असं की बलुचिस्तानचा पश्चिम प्रभाग इराणमध्ये सध्या मोडतो. स्वतंत्र बलुचिस्तान होणं इराण्यांनाही अडचणीचं वाटत असल्याने याबाबतीत इराण आणि पाकिस्तान हातात हात घालून आहेत. ही युती तोडता येणं भारताला प्रत्यक्षात कितपत शक्य आहे हा प्रश्न असला तरी भारत पाकिस्तानी बलुचिस्तानला विभक्त करण्यासाठी कसा वेग देऊ शकतो हे पहायला हवं.लष्कर-ए-बलुचिस्तान आणि बलुचिस्तान लिबरेशन आर्मी या दोन्ही गटांत सामंजस्य घडवून आणत भारत त्यांना आर्थिक आणि सामरिक मदत मोठ्या प्रमाणावर पुरवू शकतो. अर्थात तसं करण्यासाठी भारताला अफगाणिस्तानची मदत घ्यावी लागेल. ती कशी शक्य आहे हे आपण पुढे पाहुयात.

पख्तुनीस्तानः


पाकिस्तानचा एक दुसरा मोठा प्रदेश म्हणजे पख्तुनीस्तान (पश्तुनीस्तान) होय. हाही प्रदेश सध्या पाकिस्तानची डोकेदुखी बनलेला आहे. याचं कारण म्हणजे बलुच्यांप्रमाणेच पख्तून (पुश्तू) लोकांचीही स्वतंत्र संस्कृती आणि अस्मिता आहे. पख्तून ही पुरातन जमात असून तिचा उल्लेख सनपूर्व आठव्या शतकातील ऋग्वेदातही येतो. दाशराज्ञ युद्धात भाग घेतलेल्या एका टोळीचं नाव पख्त असं आहे. तेच हे पख्तून लोक होत. सरहद्द गांधी म्हणून गौरवले गेलेले खान अब्दुल गफार खान हे पख्तूनच होते. पाकिस्तान स्वतंत्र होण्याआधीपासूनच पख्तून लोकांची स्वतंत्र राष्ट्र म्हणून जगण्याची अथवा अफगाणिस्तानात सामील होण्याची मागणी होती. याचं कारण म्हणजे अर्धाअधिक पख्तुनीस्तान अफगाणिस्तानात आहे. संस्कृती आणि भाषा हा सर्वांचा समान दुवा असल्याने सर्व पख्तुनांचं एक राष्ट्र असावं अथवा अफगाणिस्तानात विलीन व्हावं ही मागणी तशी न्याय्यही आहे. ब्रिटिशांनी आपल्या फोडा आणि राज्य करा या प्रवृत्तीस अनुसरून १८९३ साली पख्तुनीस्तानची विभागणी केली होती.ज्या रेषेमुळे ही विभाजणी झाली तिला ‘ड्युरांड रेषा’ म्हणतात. ही रेषा पख्तुनांना स्वाभाविकपणेच मान्य नाही. खरं तर १९६५ आणि १९७१च्या भारत-पाक युद्धकाळात पख्तुनीस्तानला स्वतंत्र होण्याची संधी होती. पण केवळ पाकला युद्धकाळात अडचणीत न आणण्याचा निर्णय काही पख्तून राष्ट्रवाद्यांनी घेतला. तो निर्णय चुकीचा होता हे आता पख्तुनांना समजलं असलं तरी राजकीय पटलावर बर्याच हालचाली झाल्या असल्याने पख्तुनांचा विद्रोह आज तरी सीमित आहे. दुसरी महत्त्वाची बाब अशी की आज अफगाणिस्तानातील जवळपास ४५ टक्के लोकसंख्या ही पख्तुनांची आहे. पाकिस्तानातील पख्तुनीस्तान अफगाणिस्तानमध्ये यावा यासाठी अफगाणी सरकारने पूर्वी बरेच प्रयत्न केले असले तरी खुद्द अफगाणिस्तान तालिबान्यांमुळे यादवीत सापडल्याने पुढे पाक-अफगाण राजकीय चर्चेच्या पटलावर हा विषय मागे पडला. बलुच्यांची जशी स्वतंत्र संस्कृती आणि भाषा आहे त्याप्रमाणेच पख्तुनांचीही असल्याने पाकिस्तानचा प्रभाग म्हणून राहण्यात त्यांना विशेष स्वारस्य नाही. त्यात शिया-सुन्नी हा विवाद आहेच. पाकिस्तानातील बव्हंशी दहशतवादी घटनांमागे पख्तून आणि बलुची राष्ट्रवादीच असतात हेही इथे लक्षात घ्यायला हवं. या असंतोषाला भारतच (RAW मार्फत) खतपाणी घालतो हा पाकिस्तानचा जुना आरोप आहे. त्यात मुळीच तथ्य नसेल असं म्हणता येत नाही. किंबहुना ते संयुक्तिकच आहे. परंतु या प्रयत्नांना अधिक व्यापक आणि धाडसी स्वरूप देणं ही काळाची गरज आहे. भारत-अफगाण संबंध हे चांगले राहिले आहेत. याचं कारण म्हणजे तालिबानी राजवट उद्ध्वस्त करण्यासाठी अफगाणिस्तानला मदत तर केलीच परंतु त्या राष्ट्राच्या नवउभारणी प्रक्रियेत सर्वात मोठं योगदानही दिलं. २०११ मध्ये भारताने अफगाणिस्तानशी भागीदारी करारही केला. रशियाच्या आक्रमणानंतर झालेला हा अफगाणिस्तानचा पहिला करार होता. ‘



भारत आमचं बंधुसमान असलेलं राष्ट्र आहे’ अशी प्रतिक्रिया अफगाणी विदेश मंत्रालयाने दिली होती. हे सारं खरं असलं तरी भारताचं विदेश धोरण अनेकदा धरसोडीचं राहिलेलं आहे. त्यामुळे मित्र राष्ट्रांचा हवा तेवढा फायदा करून घेण्यात भारताला अनेकदा अपयश आलेलं आहे. खरं तर पाकव्याप्त पख्तुनीस्तान अफगाणिस्तानात विलीन करवणं अथवा स्वतंत्र राष्ट्र म्हणून त्याची निर्मिती करणं हे अफगाणिस्तानलाही फायद्याचं आहे. स्वतंत्र राष्ट्र बनल्यास अफगाणिस्तान आणि पाकिस्तानमध्ये एक बफर राष्ट्र निर्माण होईल. आज अफगाणिस्तानात होणारे अमेरिकन ड्रोन हल्ले पाकिस्तानी भूमीतून केले जात असल्याने अमेरिकेबद्दल आणि अर्थातच पाकिस्तानबद्दल रोष आहे हेही एक वास्तव लक्षात घ्यायला हवं. अशा परिस्थितीत भारताने स्वतंत्र बलुचिस्तान आणि पख्तुनीस्तानला मोठ्या प्रमाणावर मदत करण्याची आवश्यकता आहे. सिंध आणि पंजाब प्रांत हा सांस्कृतिकदृष्ट्या वेगळा असल्याने तेवढाच पाकिस्तान राहील. ही मदत अफगाणिस्तानातूनच पुरवता येईल अशा पद्धतीने व्यूहरचना करता येणं शक्य आहे. अफगाणिस्तानला त्यासाठी भारताला अधिकची मदत पुरवता यायला हवी. मैत्रीचे संबंध सर्व स्तरांवर अधिक दृढ कसे होतील यावरही लक्ष केंद्रित करता यायला हवं. यासाठी भारतीय नागरिकांनीही सक्रिय पुढाकार घ्यायला हवा. किमान सांस्कृतिक आणि पर्यटनाच्या पातळीवर लोकांना हे करता येणं अशक्य नाही.



नचिकेत सुरेश गुरव - 19 de agosto de 2013 - denunciar abuso
पाकिस्तानी-चीनी ही एक अभद्र युती आहे. व्याप्त काश्मिरमधून पाकिस्तानने चीनला जोडणारा लष्करी महामार्ग बनवून दिला आहे. याबाबत भारताने कधीही तीव्र आक्षेप घेतला नाही अथवा तो रस्ता उद्ध्वस्त करण्याचा प्रयत्न केलेला नाही. भारत-पाक युद्ध झालं तर चीनची मदत अत्यंत वेगाने पाकिस्तानला मिळू शकते. अलीकडेच नवाज शरीफांच्या चीन भेटीत या महामार्गाचं माल वाहतुकीसाठी व्यापारी मार्गातही रूपांतर करण्याचं घाटत आहे. शरीफ यांच्या दृष्टीने पाक अर्थव्यवस्थेला या महामार्गाचं बळ मिळणार असलं तरी ती भारताच्या दृष्टीने मोठी कटकट ठरणार आहे. त्यासाठी भारताची रणनीती काय हे अद्याप स्पष्ट झालेलं नाही. आपले संरक्षण मंत्री ए. के. अँटनी यांनी याबाबत बोटचेपं धोरण स्वीकारलं असल्याने ते निःसंशय टीकेस पात्र आहेत. चीनच्या सीमावादातील मुजोरीला भारत झुकला आहे असंच वरकरणी दिसतं. अशा परिस्थितीत चीनलाही शह द्यायचा असेल तर पाकिस्तानचं त्रिभाजन हाच पर्याय भारतासमोर असला पाहिजे. त्यासाठी भारताने प्रत्यक्ष युद्ध करण्याची गरज नाही. पख्तून आणि बलुच्यांमधील स्वतंत्रतेच्या जाज्वल्य भावनांना प्रोत्साहन देत त्यांना छुपी ताकद सर्वशक्तिनिशी पुरवली पाहिजे. अफगाणिस्तानबरोबरील संबंधांचा त्यासाठी उपयोग केला पाहिजे. तरच आपण खर्या अर्थाने पाकिस्तानचा धोका संपवू शकतो आणि चीनवरही अप्रत्यक्ष मात करू शकतो. पण गरज आहे ती इंदिराजींसारख्या दृढ निर्णय घेऊ शकणार्या पंतप्रधानांची आणि खर्याखुर्या राष्ट्रभावनांनी प्रेरित भारतीयांच्या सामूहिक इच्छाशक्तिची… आणि स्वतःच्या सहभागाचीही.



नचिकेत सुरेश गुरव - 19 de agosto de 2013 - denunciar abuso
Bhartiya guptachar yantrana kadun ase prayatna chalu ahet ase aikun ahe. Jar kharach ase zale tar pakistani anvastre konakade jatil vaa jane aaplya hitache ahe ??
Yatil aaplyala faydyacha vaa kami upadravi kon asel ??
DJ Rajesh music lover - 19 de agosto de 2013 - denunciar abuso




भारत  या देशाकडून फार मोठ्या अपेक्षा ठेवू नका. कोन्ग्रेस च्या काळात तरी. भारतच्या ताब्यातील  छोटासा काश्मीर विभाग नीटपणे ताब्यात ठेवता आला नाही, तर पाकिस्तानच्या ताब्यातील बालुचीस्तानला कसली मदत करणार ?
आधी काश्मीर मध्ये हिंदुना सुरक्षित वातावरण तयार करा, जिहादी घटकांना नष्ट करा, मग पाकिस्तानचे काय ते बघत येईल.
किवा काश्मीर वरील नियंत्रण हि तुमची घटक चाचणी समजा. वार्षिक परीक्षेला अजून खूप वेळ आणि अभ्यास आहे.



Mangesh J - 19 de agosto de 2013 - denunciar abuso
आपन  प्रयत्न करो या न करो ..पाकिस्तान त्याच्या  कर्माने याचे तुकडे होतील .....अणि मग अखंड भारताची सुरुवात ..
yashdeep joshi - 19 de agosto de 2013 - denunciar abuso
सोनवणी सरांचा लेख आवडला . हा लेख जास्तीत जास्त ठिकाणी शेयर करा .
सलमान खुर्शीद, अहमद पटेल  इत्यादी लोकांकडून काहीही होणार नाही .
आपण अजून विचारच करत असलो, तरी पाकिस्तान "काश्मीर - केरळ - आसाम" इत्यादी भागांतील मुस्लिमांच्या भावना भडकावून भारताचे तुकडे पडण्यासाठी केव्हाचाच कार्यरत आहे .



१] सर्वांत पहिले म्हणजे - "नवाज शरीफला कारगिल युद्धाची कल्पनाच नव्हती" हा
मीडियाकडून पसरवण्यात आलेला गैरसमज तुम्ही डोक्यातून  काढून टाका.
नवाज शरीफ हा अत्यंत बदमाश- चालू माणूस आहे. स्वतः नामानिराळे राहून भारतविरोधी षड्यंत्र चालू ठेवायची हा त्याचा डावपेच आहे . भारतातील अनेक पत्रकारांना हि वस्तुस्थिती माहित आहे.
दुर्दैवाने सलमान खुर्शीद वगैरे मंडळी जेव्हा पाक-मैत्री इत्यादी गोष्टी करतात, तेव्हा कीव तर येतेच पण किळस वाटते .



२] दुसरा मुद्दा म्हणजे - पाकिस्तानचे राजनैतिक वर्तन पाहिले तर मला तरी त्यांच्यात "राष्ट्रीय अस्मिता" दिसलेली नाही . हिंदूंपासून वेगळे होऊन, प्रांत वेगळा करून , समस्त जगाला इस्लामी भूमी बनविण्याच्या जीहाद करण्यात योगदान देण्यासाठीच पाकिस्तानची निर्मिती झाली आहे.
माझ्या पुढील व्हिडियोमध्ये तुम्हाला त्याचा पुरावा सापडेल .
हे येथे सांगण्याचा उद्देश आगामी भागांत चर्चा करू .






yashdeep joshi - 19 de agosto de 2013 - denunciar abuso
http://www.youtube.com/watch?v=gmPKUrLbgjg
yashdeep joshi - 19 de agosto de 2013 - denunciar abuso
http://www.youtube.com/watch?v=UtWf4lTUt_I
yashdeep joshi - 19 de agosto de 2013 - denunciar abuso
आधी काश्मीर मध्ये हिंदुना सुरक्षित वातावरण तयार करा, जिहादी घटकांना नष्ट करा, मग पाकिस्तानचे काय ते बघत येईल.
किवा काश्मीर वरील नियंत्रण हि तुमची घटक चाचणी समजा. वार्षिक परीक्षेला अजून खूप वेळ आणि अभ्यास आहे.



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माननीय राष्ट्रपती प्रणव मुखर्जी यांनी अफजल गुरु आणि कसाब यांच्या दयेचा अर्ज झटपट फेटाळून अत्यंत अभिनंदनीय कृती केली . प्रतिभा पाटील यांना ५ वर्षांत हि सद्बुद्धि कशी काय झाली नाही, याचेच आश्चर्य वाटले .
लक्षात घ्या  - अजमल कसाब जगला काय मेला काय, पाकिस्तानला त्याची काहीही पर्वा नव्हती .
प्रणवदा आले, तेव्हा कुठे, देशाला अस्तित्वमान पंतप्रधान नसला, तरी किमान एक राष्ट्रपती तरी आहे, याची अनुभूती आली.
अजमल कसाब हा जगला काय किंवा मेला काय, पाकिस्तानला काहीही पर्वा नव्हती . कारण पाकच्या धर्मांध मुस्लिम लोकांसाठी जिहादी मार्गाने हिंदू निष्पाप लोकांच्या कत्तली करणारासुद्धा "जन्नतला' जात असतो, त्यामुळे कासाबला "जन्नतचे " सद्भाग्य मिळेल हि त्यांची समजूत.


दुसरीकडे पाकिस्तानात मध्यमवर्गच अस्तित्वात नसल्याने  व दारिद्र्यात जगणारी जनता भरपूर असल्याने त्यांना कसाब्चे वर्तमानविषयी काहीही माहिती नव्हती, तसेच त्यांना त्याविषयी जिज्ञासाही नव्हती .
तिसरे म्हणजे आय.एस. आय ने २६ - ११ चा हल्ला हा भारताचाच डाव आहे, असे सांगितल्याने कसाब हा आय.एस. आय वर विश्वास ठेवणा-यांसाठी कसाब केवळ बळीचा बकरा होता .
चौथे म्हणजे जे ०.१ % मानवतावादी लोक पाकिस्तानात असतील , ते स्वतःच मान्य करतात कि पाकिस्तान हा स्वतः निर्माण केलेल्या दहशतवादात गुरफटत चालला आहे,  त्यामुळे कसाब्च्या जीवनाचा अंत काय होणार याची त्यांना कल्पना होतीच .
हे येथे सांगण्याचे प्रयोजन म्हणजे - जर  अफजल गुरूला - कसाबला फासावर चढविण्यास आपण नको तेवढी दिरंगाई करत असू , तर आपण स्वतः सैनिकांचे मनोबल खच्ची करत आहोत . कसाब आणि अफझल गुरु यांच्या फाशीचा विषय कोणी मुस्लिम व्होट-ब्यान्कशी जोडत असेल, तो तर देशद्रोही मानायला हवा.
दुर्दैवाने विक्रमी विदेशदौरे करणारे आधीचे राष्ट्रपती, त्याविषयी फार जागरूक दिसले नाहीत .





Kaustubh Gurav - 19 de agosto de 2013 - denunciar abuso
Nachiket
100% agreed
Shailendrasingh Patil - 19 de agosto de 2013 - denunciar abuso
नेहेमीप्रमाणे भारत बेसावध आहे. कदाचित सरकारने आता सैन्याला तयारीचे आदेश दिले असावेत. ती तयारी ह्या हिवाळ्यापर्यंत तरी संपणार नाही. तोपर्यंत जनमत बनवायचं आणि हिवाळा संपताच पाकिस्तानवर हल्ला करायचा असा प्लान असावा. ते युद्ध जिंकुन निवडणुकीला सामोरे जाणे कॉंग्रेसच्या सोयीचे होईल. भारताला युद्ध जिंकता येतात, नंतरच्या चर्चांमधे मात्र आपण सगळं गमावुन बसतो.
पाकिस्तानची शकले करायची असतील तर पाकिस्तानातील फ़ुटिरतावाद्यांना खुप पैसा पोहोचवता यायला हवा. जागतिक मिडियातुन तसा प्रचार करायला हवा. तो प्रचार शिगेला पोहोचला कि मग लष्करी कारवाई करुन तुकडे पाडता येतील.



Suyash ................. - 19 de agosto de 2013 - denunciar abuso
आपल्या सैनिकांवर हल्ला झाल्यावर २ दिवसात क्वेटा  मध्ये स्फोट झालेत, जे अफगाण सीमेवर आहे
अविनाश बेधुंद.स्वच्छंदी..मुक्त जीवन - 19 de agosto de 2013 - denunciar abuso
भारताचे तुकडे होत आहेत त्याचा विचार म्हत्वाचा.
अविनाश बेधुंद.स्वच्छंदी..मुक्त जीवन - 20 de agosto de 2013 - denunciar abuso
Shailendrasingh Patil:


नेहेमीप्रमाणे भारत बेसावध आहे. कदाचित सरकारने आता सैन्याला तयारीचे आदेश दिले असावेत. ती तयारी ह्या हिवाळ्यापर्यंत तरी संपणार नाही. तोपर्यंत जनमत बनवायचं आणि हिवाळा संपताच पाकिस्तानवर हल्ला करायचा असा प्लान असावा. ते युद्ध जिंकुन निवडणुकीला सामोरे जाणे कॉंग्रेसच्या सोयीचे होईल. भारताला युद्ध जिंकता येतात, नंतरच्या चर्चांमधे मात्र आपण सगळं गमावुन बसतो.
पाकिस्तानची शकले करायची असतील तर पाकिस्तानातील फ़ुटिरतावाद्यांना खुप पैसा पोहोचवता यायला हवा. जागतिक मिडियातुन तसा प्रचार करायला हवा. तो प्रचार शिगेला पोहोचला कि मग लष्करी कारवाई करुन तुकडे पाडता येतील.
मुद्द्यात दम आहे...मोदी ला डिफ्युज करणा साठीचा उत्तम मार्ग..अर्थात लोक किति फसतिल व आर्थिक द्रुष्ट्या परवडणार का?



Ambareesh Phadnavis - 20 de agosto de 2013 - denunciar abuso

आगामी काळ कठीण आहे. २०२४ पर्यंत तरी कठीण आहे. २०१४-२०२४ हा बिकट काळ आहे. पाकिस्तानचे तीन तुकडे करणे वगैरे ठीक आहे, प्रॉब्लेम कसे करायचे हा आहे.
शैलेंद्रजी योग्य म्हणाले पण त्यात आणखीन एक पदर आहे जो त्यांनी सोडला आहे. पाकिस्तान च्या अस्तित्वाची सर्वात मोठी ग्यारंटी खुद्द दिल्ली स्थित भारतीय सत्तेने घेतली आहे. दिल्ली ची लॉबी (निव्वळ कॉंग्रेस नाही, तर भाजप चे देखील युपी आणि दिल्लीमधले काही नेते) पाकी लोकांशी पप्पी-झप्पी करत असते. जोवर हि लॉबी सत्तेत आहे, तोवर पाकिस्तान ला समूळ धक्का लावण्यात येणार नाही.
पाकिस्तान शी युद्ध म्हणजे चीन-अमेरिका-ब्रिटन या तीन देशांशी एकत्रित युद्ध आहे. भारताची ती तयारी नाही.
दिल्ली च्या या लॉबीला सत्तेत ठेवायला पाकिस्तान देखील एक लहान विजय भारताला देऊ शकतो. तुंडा चे हस्तांतरण देखील यातलाच एक भाग आहे.
निर्णायक लढाई किंवा संघर्ष दहा वर्षांनी होईल.. तोवर काश्मीर आणि (किंवा) पूर्वोत्तर भारत हातचा गेलेला असेल आणि भारतात मोठ्या प्रमाणात रक्तपात, दंगली आणि गृहयुद्ध सदृश परिस्थिती उद्भवलेली असेल. जर भारतीयांनी (बहुतांश हिंदूंनी) तेव्हा जागे होऊन प्रत्याक्रमण सुरु केले (प्रत्येक पातळीवर, समजेल त्याच शब्दात आणि कृतीत) तर भारत परत गेलेला भाग परत मिळवू शकतो. प्रत्याक्रमण सामाजिक पातळीवर, गुंडांच्या पातळीवर, सामरिक पातळीवर, वैचारिक पातळीवर सर्वात मुख्य म्हणजे धार्मिक आणि सांप्रदायिक पातळीवर होणे आवश्यक आहे. आणि ते होईल.



पण हे सगळे भीषण रक्तपातानंतर सुचलेली अक्कल असेल. पाकिस्तान चा बंदोबस्त करणे म्हणजे इस्लाम चे भारतीयीकरण आणि हिंदुकरण करणे.  हे महाराष्ट्रात सर्वांना आता पटणार नाही. पण किश्तवाड, कोक्राझार, बंगाल, केरळ, मेरठ, उत्तर-बिहार वगैरे ठिकाणी हिंदू लोकांना हे आता पटू लागले आहे.




Ambareesh Phadnavis - 20 de agosto de 2013 - denunciar abuso

आगामी काळ कठीण आहे. २०२४ पर्यंत तरी कठीण आहे. २०१४-२०२४ हा बिकट काळ आहे. पाकिस्तानचे तीन तुकडे करणे वगैरे ठीक आहे, प्रॉब्लेम कसे करायचे हा आहे.
शैलेंद्रजी योग्य म्हणाले पण त्यात आणखीन एक पदर आहे जो त्यांनी सोडला आहे. पाकिस्तान च्या अस्तित्वाची सर्वात मोठी ग्यारंटी खुद्द दिल्ली स्थित भारतीय सत्तेने घेतली आहे. दिल्ली ची लॉबी (निव्वळ कॉंग्रेस नाही, तर भाजप चे देखील युपी आणि दिल्लीमधले काही नेते) पाकी लोकांशी पप्पी-झप्पी करत असते. जोवर हि लॉबी सत्तेत आहे, तोवर पाकिस्तान ला समूळ धक्का लावण्यात येणार नाही.
पाकिस्तान शी युद्ध म्हणजे चीन-अमेरिका-ब्रिटन या तीन देशांशी एकत्रित युद्ध आहे. भारताची ती तयारी नाही.
दिल्ली च्या या लॉबीला सत्तेत ठेवायला पाकिस्तान देखील एक लहान विजय भारताला देऊ शकतो. तुंडा चे हस्तांतरण देखील यातलाच एक भाग आहे.



निर्णायक लढाई किंवा संघर्ष कदाचित दहा वर्षांनी होईल.. तोवर काश्मीर आणि (किंवा) पूर्वोत्तर भारत हातचा गेलेला असेल आणि भारतात मोठ्या प्रमाणात रक्तपात, दंगली आणि गृहयुद्ध सदृश परिस्थिती उद्भवलेली असेल. जर भारतीयांनी (बहुतांश हिंदूंनी) तेव्हा जागे होऊन प्रत्याक्रमण सुरु केले (प्रत्येक पातळीवर, समजेल त्याच शब्दात आणि कृतीत) तर भारत परत गेलेला भाग परत मिळवू शकतो. प्रत्याक्रमण सामाजिक पातळीवर, गुंडांच्या पातळीवर, सामरिक पातळीवर, वैचारिक पातळीवर सर्वात मुख्य म्हणजे धार्मिक आणि सांप्रदायिक पातळीवर होणे आवश्यक आहे. आणि ते होईल. नाहीतर पाकिस्तान एकदा तोडून भारताला फारसे काहीही मिळाले नाही, फक्त दोन पाकिस्तान मिळाले. बांगलादेश हा दिल्लीच्या लॉबी साठी चांगला असेल, आसाम आणि बंगाली आणि मणिपुरी आणि त्रिपुरी लोकांसाठी, इथल्या हिंदूंसाठी आणि खुद्द बांगलादेशातल्या हिंदूंसाठी बिलकुल फरक नाही. त्यामुळे अजून तीन तुकडे केले कि बांगलादेश सारखे दिल्ली च्या सरकार शी मैत्री ठेवणारे तीन वेगळे देश तयार होती. दक्षिण आशिया खंडातल्या हिंदूंच्या नशिबातली साडेसाती काही संपणार नाही.
पण हे सगळे भीषण रक्तपातानंतर सुचलेली अक्कल असेल. पाकिस्तान चा बंदोबस्त करणे म्हणजे इस्लाम चे भारतीयीकरण आणि हिंदुकरण करणे.  हे महाराष्ट्रात सर्वांना आता पटणार नाही. पण किश्तवाड, कोक्राझार, बंगाल, केरळ, मेरठ, उत्तर-बिहार वगैरे ठिकाणी हिंदू लोकांना हे आता पटू लागले आहे.


पाकिस्तानी सेनेचा संपूर्ण विनाश (मी शारीरिक विनाश म्हणतोय) आणि तो मुलुख भारताच्या सेनेच्या संरक्षणाखाली ७०/८० वर्षे ठेऊन आणि तिथे विहिंप वगैरे संस्थांना संपूर्ण प्रोटेक्शन देऊन धर्मप्रसार केला कि २-३ पिढ्यांनंतर "कदाचित" धार्मिक लोकांची पैदावार तिथे सुरु होईल. तोवर भारताने आणि हिंदूंनी खमके राहणे आवश्यक आहे. त्या आधी गंगेच्या खोऱ्यात कार्यरत असलेले जिहादी नेटवर्क नेस्तोनाबूत करावे लागेल, मगच वरील पाउल उचलता येईल. आणि वरील पाउल उचलायला दिल्ली बाहेरचे नेते सत्तेत किमान दहा वर्षे तरी असायला हवेत जेणेकरून निवडणूक प्रक्रियेत आवश्यक त्या सुधारणा करून मतपेटी चे राजकारण कमी करता येईल.




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Ambareesh Phadnavis - 20 de agosto de 2013 - denunciar abuso

सिद्धेश, नाही.. एक खूप मोठा प्रॉब्लेम आहे या विचार प्रणाली मध्ये..
चीन भारताशी दीर्घकाळ मैत्री का करेल? चीन ला भारताकडून असे काय मिळेल जे आता मिळत नाही? जर दीर्घकाळ मैत्रीची कमिटमेंट न करता व्यापाराचे सगळे फायदे मिळत असतील तर मैत्रीची कमिटमेंट कुणी का करावी? वही सफेदी वही झाग कम दाम मे मिले तो कोई ये क्यू ले, वो न ले?
भौगोलिक दृष्ट्या पाकिस्तानच्या मदतीला अमेरिका सहज येऊ शकतो कारण सौदी, बहरैन आणि हिंदू-महासागरात दिएगो गार्सिया नावाच्या बेटावर अमेरिकेचे आणि इंग्लंड चे खूप मोठे लष्करी तळ आहे. अमेरिकेचे पाचवे आणि सातवे आरमार सिंधूसागरात तैनात आहे. जवळपास एक लक्ष सैनिक आहेत. त्यामुळे एक वेळ चीन नाही येऊ शकणार, अमेरिका सहज येईल..
अधिक अमेरिकेला प्रत्यक्ष काहीही करायची गरज नाही. मदत म्हणून जी रक्कम ते पाकिस्तान ला देतात ती रक्कम वापरून पाकिस्तान अमेरिकी शस्त्रास्त्रे, सामग्री, विमाने वगैरे विकत घेतो. या सगळ्यांना वरून अमेरिकी उपग्रहांचा सपोर्ट असतो. माझ्या काही सेनेतल्या ओळखीच्या लोकांनी मला सांगितले कि ऑपरेशन पराक्रम च्या वेळेस पाकिस्तानला अमेरिका भारतीय वायुसेनेबद्दल माहिती पुरवीत होता. माहिती म्हणजे खरी खुरी रियलटाईम इंटेलिजन्स.. कुठल्या भारतीय बेस वरून कुठल्या क्षणी कुठले विमान उडत आहे हे सगळे वरून उपग्रहांद्वारे बघून ती माहिती पाकिस्तान ला पुरवली तर आक्रमण करून फायदा काय?



सगळी लष्करी डावपेच कोलमडून पडतात जर तुमची प्रत्येक हालचाल शत्रू बघत असेल आणि तुम्ही ती बघू शकत नसाल तर.
भारत १/२ महिने चालणाऱ्या युद्धात कोलमडून पडेल. कारण आपले उत्पादन क्षेत्र फार कमकुवत आहे. पहिल्या झटक्यात काही शे विमाने, रणगाडे वगैरे निकामी झाली कि इंडस्ट्री ने तितक्या गतीने नवीन विमाने, रणगाडे वगैरे निर्मिती करून सेनेला तत्परतेने पुरवले पाहिजे. जर्मनी ५ वर्षे दोन आघाड्यांवर असा शुरतेने लढू शकला कारण त्यांचे उत्पादन क्षेत्र सॉलिड तगडे आहे.



सेवा क्षेत्रावर आधारित अर्थव्यवस्था युद्धतत्पर कधीही नसते. आपल्या कडे सध्या mechanical engineers, electrical engineers, गणितज्ञ, भौतिकशास्त्री, रसायनशास्त्री, भाषाशास्त्री वगैरे पोरांची खूप कमी आहे. सगळे पोरे सरसकट कम्प्युटर करतात आणि मग एम्बीए करतात. करियर म्हणून ठीक आहे, पण असे देश कधीही एक मोठी शक्ती म्हणून उभारू शकत नाहीत, सोरी..



रशिया कम्युनिस्ट नाही आहे. आणि त्यांची युद्ध करायची ऐपत नाहीये.
Ambareesh Phadnavis - 20 de agosto de 2013 - denunciar abuso
इंग्लंड आणि अमेरिकेचे कौतुक करावे तेव्हढे कमी आहे.
जगात कुठल्याच सत्तेने एका समूहाला असे सहजतेने नाही नाचवले जितक्या सहजतेने अमेरिका-इंग्लंड सुन्नी-मुस्लीम लोकांना नाचवते..
जेव्हा या १९२४ नंतर च्या कालखंडाचा इतिहास लिहिला जाईल तेव्हा तो इतिहासकार अमेरिकेचे आणि इंग्लंडचे (मुख्यत्वे इंग्लंड) तोंडभरून कौतुक केल्याशिवाय नाही राहणार आणि सुन्नी लोकांची चेष्टा केल्याविना नाही राहणार.. कुणी डोक्याने इतके पैदल कसे काय असू शकते, हा प्रश्न मला वारंवार पडतो.. हे लोक अमेरिकेला शिव्या तर घालतात पण त्यांच्याच मैला वाहतात आणि त्यासाठी वाट्टेल ते करतात..
Kaustubh Gurav - 20 de agosto de 2013 - denunciar abuso
जगात कुठल्याच सत्तेने एका समूहाला असे सहजतेने नाही नाचवले जितक्या सहजतेने अमेरिका-इंग्लंड सुन्नी-मुस्लीम लोकांना नाचवते..
+1
नचिकेत सुरेश गुरव - 21 de agosto de 2013 - denunciar abuso
@ ambareesh, shailendra
+1




SANDESH, HOW GREEN WAS MY VALLEY - 21 de agosto de 2013 - denunciar abuso


चीन आणि पाकिस्तानच्या चीथावण्या नैराश्यातून निर्माण झालेल्या आहेत सध्याच्या परिस्थितीत युरोपियन समूहातील देश
चीन च्या ऐवजी भारतामधून माल आयात करण्यास इच्छित आहेत. एकतर त्यांची मागणी थोडी कमी झालेली आहे आणि जेव्हढी त्यांची गरज आहे तितका माल एकटा  भारत त्याना पुरवू शकतो. बांगलादेशातून पण तिथे मोठ्या प्रमाणात निर्यात त होते शिवाय त्यांचा माल   थोडा स्वस्त पण आहे . पण तिथे राजकीय स्थैर्य नाही. तुलनेने भारतात ते आहे.  भारताला मिळणारा फायदा पाहून  चीन पाकिस्तान बांगलादेश या सगळ्यांच्या पोटात दुखणे स्वभाविक आहे. त्यामुळे भारतात अस्थिरता निर्माण करायचा प्रयत्न ही शेजारी राष्ट्रे करत आहेत. यांना पुरून उरायचं असेल तर आपसातील मतभेद विसरून एकजुटीने सामंजस्याने    लढा द्यायला हवा .

Friday 18 November 2016

बस तारीख पे तारीख







पुरोगामी महाराष्ट्राला सुन्न करून सोडणारी एक बलात्काराची भीषण घटना नुकतीच महाराष्ट्रात घडली .अहमदनगर जिल्ह्यातील कोपर्दी गावात एका अल्पवयीन मुलीवर काही नराधमांनी पाशवी अत्याचार केले गेले. शरीराला पिडा देण्यापासून तर सरळ जीव घेण्यापर्यंतच्या पिशाच्च वृत्तीचा परिचय आला.घटनेनंतर कोपर्दी व आसपासच्या लोकांनी तीव्र निदर्शने केली .संप झाला.बंद झाले.सम्पूर्ण महाराष्ट्रीय समाजाला  तीव्र वेदना झाल्या .त्याचे पडसाद विधानसभा हादरवन्या पर्यंत उमटले.या घटनेचं  गांभीर्य इतके घेतले गेले कि सैराट चित्रपटाला दोष देण्यापर्यंत काही लोकांच्या शब्दांनी मजल मारली .



मूळ प्रश्न दूरच राहिला तर काही सेकुलर राजकारणी लोक जातीय टुरिझम करण्यात उतरले .एवढे क्रूर काम होऊनही राज्याचे मुख्यमंत्री केवळ आणि केवळ फाशीच मागणीच करू शकतात.राज्य्प्रमुखाला या प्रशासनिक व्यवस्थांमध्ये फक्त एवढेच अधिकार का आहेत? केवढे हे शिवछत्रपतींच्या महाराष्ट्राचे  दुर्दैव म्हणावे ?

स्त्रीच्या जर केसालाही धक्का कोणी लावला तर त्याला टकमक टोकावरून दरीत फेकणारा ,सावित्रीला हात लावला म्हणून सैनिकाचे डोळे फोडणारा महाराष्ट्र कुठे आहे??भिवंडीच्या सुलतानी सुभेदाराची सून हाती आल्यावर तिला आईसाहेब संबोधणारे आमचे महाराज व तो काळ. मोगालादि शत्रूंच्या बायका हाती लागल्यावरही त्यांना साडीचोळी करणाऱ्या आमच्या सईबाई राणीसाहेब व त्यांची ती शिकवण .शिवाजी ओठीच का उरलाय फक्त? शिवाजी आपल्या व्यवस्था तन्त्रात का नाही?

निर्भय कांडानंतर  काय झाले? कोणता न्याय मिळाला? वयाच्या  १८ वर्षे पूर्ण व्हायला फक्त २७ दिवस कमी होते म्हणून निर्भायाच्या बलात्कार्याला बालगुन्हेगार मानले गेले .३ वर्षे  बालसुधारगृहात ठेवले गेले व नंतर सुटका झाली .अशा नराधमांसाठी जुवेनाईल जस्टीस act आहे देशात .अशा गुन्हेगारांना न्यायपालिका बालक किंवा लहान मुले कशी काय मानते? सर्वात जास्त अन्याय तर अरुणा शानबाग बरोबर झाला केइएम रुग्णालयातील या परीचारीकेवर सोहनलाल वाल्मिकी नामक उत्तर प्रदेशातील एका वार्ड बॉय ने इतका प्रचंड घातक अत्याचार केला कि अरुणा कोमात गेली आणि तेही थोडे थोडके नव्हे तर तब्बल ४२ वर्षे तिला लाइफ सपोर्ट सिस्टीम वर कोमात जगावे लागले .आणि या नराधमाला शिक्षा फक्त ७ वर्षे .आता तर तो सुखात जगतोय.


जेव्हाही अशा घटना होतात समाज आंदोलन करतो.विविध संघटनांचे मोर्चे गावापासून शहरापर्यंत काढले जातात . मोठमोठी भाषणे होतात .राजकारणी लोक यात आपले हित साधतात .आश्वासने दिली जातात.निषेध व्यक्त होतो पण पुन्हा काय ??
जैसे थे.

आपल्याकडे स्त्री अत्याचाराची मूळ करणे व त्याचे समाधान यावर चर्चाच होत नाही वस्तुतः काय आहे न मेकॉले शिक्षण व्यवस्थेमुळे (बि)घडलेल्या भारतीयांना आपण कुठल्या व्यवस्थांच्या देशात राहतोय हेच ठाऊक नसते .हि न्यायव्यवस्था एवढी अन्याय कारक का झालीय आपल्या भारतीयांच्या समस्यांसाठी त्याचा व्यवस्थित उलगडा व्हावा म्हणूनच हा लेखणी प्रपंच .

दामिनी चित्रपटातील सनी देओल चा डायलॉग तारीख पे तारीख बस तारीख पे तारीख हि या देशातल्या न्याय व्यवस्थेची  खरी ओळख .इंग्रज भारतात १४ व्या शतकातच आले पण खरे इंग्रजी राज्य हे १८६१ नंतर म्हणजेच १८५७ चे स्वातंत्र्य समर संपल्यावरच आले.लुटायला सोपे जावे म्हणून इंग्रजांनी देशाला युनिफाइड स्वरूप दिले . आणि अर्थातच भारत लुटायचा म्हणजे एक केंद्रीकृत लुटीन्ग सिस्टीम देशभर असायलाच हवी न ?म्हणूनच मित्रांनो शिक्षण न्याय taxation  पर्यंतच्या सर्व व्यवस्था ब्रिटिशांनी बनवल्या .गवर्नर जनरल लॉर्ड मेकॉलेने त्या आधीच भारतीय शिक्षण व्यवस्था उध्वस्थ केली होती .व त्याजागी गुलाम कारकून जन्माला घालणारी मेकॉले शिक्षण व्यवस्था जन्माला घालून तो न्याय प्रणालीकडे  वळला .१८६१ ला इंग्रजांनी देल्ही पोलीस  act बनवला ज्याच्या मसुद्यामध्ये असे लिहिले आहे कि कॉप्स आर एजेन्टस ऑफ गवरमेंट and नॉट फॉर पीपल्स केअर” म्हणजे पोलीस सरकारचे हस्तक म्हणून काम करतील जनतेसाठी स्वतंत्र  यंत्रणा नाही किरण बेदिजींनी कित्येक वेळा अनेक वृत्त वाहिन्यांवर याबद्दल तीव्र विरोध प्रकट केलाय .ब्रिटीश तंत्राने या देशावर अधिकार गाजवायला हि न्यायप्रणाली अस्तित्वात आणली गेली 

.या व्यवस्थेला घडवायला ब्रिटीशांचे गवर्नर  जनरल ,उच्चपदस्थ अधिकारी विविध आयसीएस अधिकारी तसेच हाउस of कॉमनस म्हणजेच इंग्लंडच्या संसदेतील खासदार कामाला लागले या सर्व कामात लॉर्ड मेकॉले तर जातीने लक्ष देऊ लागला होता .तेव्हा देशावर ब्रिटीश इस्ट india कंपनीचे राज्य होते.त्या कंपनीला देशातील सर्व कायदे व्यवस्था हाउस of कॉमन्स मधूनच पारित करून घ्यावे लागत असे भारतीय न्याय पालिका  कशी असेल व  ती कोणत्या प्रकारे व नियमांद्वारे न्यायदान करेल यासाठी एक मसुदा तयार करण्यात आला.  तो मसुदा आज इंडिअन पेनल कोड अथवा भारतीय दंड विधान (भादंवि) या नावाने ओळखला जातो .हा ipc चा ड्राफ्ट जेव्हा मेकॉले ने अनुमोदन मागून पारित करायला इंग्लंडच्या संसदेमध्ये ठेवला .तेव्हा तत्कालीन इंग्रज खासदार व जागतिक ख्यातीचे कायदेतज्ञ सर एडमंड विर्क यांनी पुढील तीप्पानिद्वाते याबद्दलचे आपले अभिमत व्यक्त केले होते ते खाली देत आहोत .



‘कोणत्याही समृद्ध आणि प्रबुद्ध परंपरा , जीवनमान पद्धती असलेल्या सुसंस्कृत समाजाला व राष्ट्राला सरकारी अत्याचारांनी दारिद्र बनवाण्याकर्ता ,चरित्र भ्रष्ट होऊन भित्रे व कर्मदरिद्र ’ ,तसेच दुष्टांचे पक्षधर बनवून त्या समाजाच्या आतल्या मानवी भावनात्मक सद्गुणांचा सत्यांश करण्यासाठी यापेक्षा अधिक प्रभावी कायदे पुस्तिका  लिहलीच जाऊ शकत नाही .आता अनेक वर्षापर्यंत भारत ब्रिटीशांच्या या अन्याय्तन्त्राच्या पिंजर्यात बंद,पंख छाटलेल्या पक्ष्यासारख फडफडत राहील शाब्बास मेकॉले तुझ्या या कामासाठी .वाह वाह क्या बात है !”   -एडमंड विर्क

सोप्या शब्दात सांगायचे असल्यात भारतीय न्याय्तन्त्र हे हजारो अपराधी सुटले तरी चालेल पण एक निरपराधी दंडित होऊ नये या तत्वावर चालते आहे.किंबहुना सर्व अपराधी हे निर्दोशाच कसे आहेत हेच काय ते सिद्ध करण्याची हि व्यवस्था बनलीय .तारखांवर तार्खांमुळे उशिर होतो.यावेळेत आरोपीला पळण्याचा मार्ग सापडतो .खोटे पूर्वे सादर करून राजकीय दबावतंत्र वापरून न्यायलाच  खिळ  घातली जाते .

सर्वेक्षणे व काही  न्यायप्रिय कायदे तज्ञानुसार भारतीय न्यायपालिका हि ६% कान्विक्शन रेट असणारी व्यवस्था झालीय.म्हणजेच १०० खटल्यांपैकी फक्त ६ खटले निकाली निघतात.शिक्षा घोषित होते पण शिक्षेची अंमलबजावणी मात्र सरकारच्या हाती असते .आणि आजकालची सरकारे तर नागपूर भुसावळ पसेंजर गाडीपेक्षाही आळशी आहेत .आमची गाडीतरी बरोबर एक वाजता शेगावला पोचवते पण हि सरकारे सुभानाल्लाह!


भारतीयांवर हे इंग्रजी व्यवस्थांचे जोखड इतक्या खोलवर रुजवले गेले कि इंग्रजांच्या वेळचा वकील व न्याय्मुर्तीन्साठीचा  तो काळा कोट देखील   बदलला गेला नाही त्यासाठीदेखील इथेच लढावे लागले तेव्हा कुठे त्याचे बंधन काढले 
गेले .

खरे स्वातंत्र्य  हे अधुरे आहे का ? आजही इंग्रजांच्या संसदेतल्या व्यवस्थांचे जोखड धरून का जगतीय हि  भारतमाता ?  जर संविधानाने देशाला प्रजासत्ताक दिले तर मग हे ब्रिटीशकालीन सर्वच्या सर्व जसेच्या तसे कसे सुरु आहे .? डॉ आंबेडकरांनी जर ३ वर्षे मेहनत घेऊन ह्या व्यवस्था बनवल्या तर मग १९४८ ला नाथुरामला फाशी कोणत्या न्यायपालीकेद्वारे देण्यात आली?  नव्या व्यवस्था का बनवल्या गेल्या नाहीत? प्रजसत्ताक म्हणने हे व्यर्थ आहे का? सावरकर, भगत सिंग सुभाश्चन्द्रांचे हे बलिदान व्यर्थ गेले का ? नेहरू व mountbatan मध्ये १४ ऑगस्ट च्या रात्री जो करार झाला तो संपूर्ण स्वातंत्र्याचा नसून फक्त ट्रान्स्फर of पावर चा करार आहे का?

गेल्या दोन दशकात भारतीय जनमानसाने  सर्वच प्रकारच्या आधुनिक क्रांतीला समर्थन केले आहे .उदारीकरण जागतिकीकरण एलेक्ट्रोनिक क्रांती  सोशल मिडिया मिसाईल्स आदींच्या क्षेत्रात परिवर्तन झाले.पत्र ते मोबाईल ,साडी ते जीन्स ,धोतर ते trauser वृत्तपत्र ते ई-न्यूज पेपर गणपती बाप्पात ते लॉर्ड गणेशा वगरे सर्व बदल स्वीकारले किंवा केले गेलेच न? बँकांमध्ये कॉम्पुटर ,निवडणुकीमध्ये एलेक्ट्रीनिक वोटिंग मशीन पर्यंत आधुनिकता बदल झालेच नां ?


भाषा भूषा भोजन देखील इतक्या एक्स्ट्रीम लेवेल वर बदलल्या गेलेच नां? मग हि न्यायव्यवस्था का नाही? ती का पावणेदोनशे वर्षे जुनीच,गरिबाला न  परवडणारी,पीडितांना छळणारी,न्यायला तारखांवर तारीख देत  उशीर करत सतत न्यायला हुलकावणी देणारी हि अन्यायव्यवस्था ?आंधळया  न्यायदेवतेची उपासक हि न्यायपालिका? हि का बदलली जाऊ नये ?

शिवछ्त्र्पतींपासून काय शिकावे ? शिवाजी म्हजे न्यायाची तत्परता अन्यायाचा पूर्ण बिमोड .शिवाजी हे जगण्याचे व जगवण्याचे अर्थव्यवस्थेपासून यतर भाषाशुद्धी पर्यंतचे एक व्यवस्था तंत्रही आहे हा साधा विचार देखील  आज ७ दशके होऊनही राजकारणाला  समाजाला अद्यापही का स्पर्शला नाही ? देशातील शेकडो न्यायमूर्ती आणि वकिलांनी हि ज्युडीशिअरी बदलण्याची मागणी केली आहे .व्यवस्था स्वतः बदलास अनुकूल आहे पण राजकीय इच्छाशक्तीचा अभाव अडसर झालाय?

 गुंडागर्दी व  बलात्कारासाठी प्रसिद्ध असलेल्या समाजवादी पक्षाचे सर्वेसर्वा मुल्लायम सिंग यादव एका कर्यक्रमात म्हणाले होते कि” बलात्कारियो को फासी नही होनी चाहिये बच्चे है हमारे छोटी मोटी गलतिया हो जाती है उनसे ,,इसका मतलब ये थोडी है कि आप उनको फासी दे दो  ”

असे नालायक निर्लज्ज नतद्रष्ट राजकारणी लोकच या भ्रष्टाचाराचे मूळ कारण आहेत .


काही विचारक व मित्रांची याबद्दलची मते –

१.सिस्रो नावाचे एक लेखक आपल्या वेजिटेबल vendar या पुस्तकात लिहितात कि कानून एक गधा है जीसपर बुद्धिमान चतुर लोग सवारी करते है और सामान्य लोग उसकी दुलत्ती खाते है .

२.बनारसचे विख्यात साहित्य मनीशी श्री भारातेंदू हरिश्चंद्र यांनी भारताला अंधेर नगरिका ताजीराते शौहार उद्बोधून व्यंग नाटक लिहिले होते.ते उत्तर भारतात फार गाजले होते तेव्हा त्यावर नेहरूंनी बंदी आणली होती.

३.ये इंग्लीश law  है इसे पुरी तरहसे बदल देना चाहिये तभ हि सच्चा न्याय आयेगा.
 –advocate प्रमिला नेसरगी कर्नाटक उच्च न्यायालय .

४.युरोप व अमेरिका खंडात न्यायपालिका अगदी उत्तम व त्वरित शिक्षा देणाऱ्या आहेत .भारताने त्या देशांकडून ज्युडीशिअल पोलीसीस शिकाव्या हेच खरे  ग्लोबलायझेशन.
-dr.प्रज्ञा देशपांडे लेखिका, नागपूर.

५.महिलान्माधीला वाढत्या अत्याचाराच्या प्रवृत्तीस या ज्युडीशिअरि  मधल्या loopholes मुळेच बल मिळत आहे कडक शासन ण झाल्यामुळेच गुन्हेगारी वाढतीय .दिवसागणिक हा प्रश्न गंभीर होत चाललाय - वृषाली मोहिते  बदलापूर ,मुंबई

६.आंपण आता बुलेट ट्रेन व दुरांतोच्या faaast  युगात वावरतोय न मग हि न्यायव्यवस्था पसेंजर पेक्षाही उशिराची का ? सरकारी व्यवस्था आता update करण्याची गरज निर्माण झालीय.
- श्रद्धा मराठे ,खामगाव.

७.जलदगती न्यायालयेसुद्धा ५-१० वर्षे घेतायत न्यायनिवाडा करायला जनसहभागातून सर्वत्र पोचणारी खर्च नसलेली व lacuna नसलेली नवीन न्यायपालिका तयार व्हायला हवीय 
– अंकित कलकोटवार  ,नागपूर

८.भारताच्या संसदेत मध्यम वर्गीय युवा खासदारांचा प्रवेश झाला पाहिजे .new  generation नक्कीच सिस्टीम स्पीड अप आणि करेक्ट करे
–अमर अणे , पत्रकार नागपूर

९.शहाण्या माणसांनी कोर्टाची पायरी चढू नये हे पूर्वीचे बिरूद आता बदलायला पाहिजे .व्यवस्था परिवर्तनच  भारताचा अभ्युदय करू शकते .-सत्यम मौन्देकर ,नागपूर

१०.मराठा  मोर्च्याच्या आंदोलकांनी  शिवकालीन न्यायप्रणालीची मागणी करावी जेणेकरून मराठाच काय तर इतर सर्व महिलांना खरा न्याय मिळेल गुन्हेगारी  प्रवृत्तीवर वचक बसेल  .जवळपास ६०% आमदार व खासदार मराठा आहेत शिवाय पवारसाहेब मोदींचे गुरु आहेत मग बदलून टाका हि ब्रिटीश व्यवस्था .

-avinash bhosale